दोस्तों मेरे देश के शाही इमाम किस हद दर्जे की गिरावट का काम करते हें इसकी बानगी आप खुद ही देख लीजियें , कल लखनऊ में इन जनाब ने पत्रकारों को बुलाया और पत्रकार वार्ता के दोरान जब एक अख़बार दास्तान ऐ अवध के पत्रकार वाहिद चिश्ती ने अयोध्या मामले के फेसले पर आम राय से निर्णय हो जाने पर उसे मानने के बारे में सवाल क्या तो यह सवाल इन जनाब को इतना चुभ गया के इन्होने उस पत्रकार को बुरा भला कहा और बाहर निकल जाने के लियें कहा यहाँ तक के उस पर वोह उसे पीटने के लियें दोड़े उनका कहना था के यह पत्रकार कोंग्रेस का एजेंट हे और कोंग्रेस ने ही जजों पर दबाव बनाकर भावनाओं के आधार तथ्यों और विधि को झुटला कर यह फेसला करवाया हे ।
शाही इमाम साहब के दिल में फेसले और अयोध्या मसले को लेकर जो विचार हें यह उनके निजी हो सकते हें इनका सम्मान भी सबको करना चाहिए लेकिन इस्लाम की शिक्ष दीक्षा लियें यह इमाम जो कथित रूप से शाही इमाम खे जाते हें जबकि हमारे देश में ऐसा कोई पद ही नहीं हे जब शाही लोग नही रहे लोकतंत्र आ गया तो फिर केसा शाही इमाम यह तो खुद का महिमा मंडन हे खेर इस्लाम के जानकार जो दूसरों को सब्र और गुस्से पर काबू पाने के साथ साथ दूसरों से अखलाक से पेश आने की इस्लामिक हिदायतें देते हें उनके सिरमोर अगर ऐसा करें तो क्या वोह उस मजहब के सिरमोर कहलाने का हक रखते हें , शाही इमाम की यह बदतमीजी इस्लाम के निर्देशों और नियमों के विप्त्रित हे उनके द्वारा की गयी हरकत तो आम मुसलमानों को भी करने की इजाजत नहीं हे फिर अगर उन्होंने इस अहम मुकाम पर रहते यह सिरफिरी हरकत की हे तो पहले तो उन्हें तोबा करना चाहिए फिर जिन पत्रकार का उन्होंने अपमान क्या उनसे निजी तोर पर सार्वजनिक माफ़ी मांगना चाहिए और फिर खुद ही इस अहम पद शाही इमाम से हट जाना चाहिए , क्यूँ मेने जो कहा हे वोह सही यह या गलत आप लोग क्या सोचते हें क्रप्या मार्गदर्शन करें । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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