आपका-अख्तर खान

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21 अक्तूबर 2010

मुझे सब स्वीकार हे

यूँ क्यूँ बेकार
करते हो तुम
मेरी मनुहार ,
बस यूँ ही तेरी हर
बात हे
मुझे स्वीकार ,
मेरे होंटों पर
रखी थीं
जब उंगलियाँ
तुमने
तभी मेने समझ लिया था
के तुम्हे
हो गया हे
मुझ से प्यार ,
बात तेरी प्यार की
मां तो लूँ में मगर
देख ले
सामने खड़ा हे
सारा बेरहम संसार ,
लाकह सोचता हूँ
अब तो छोड़ दूँ
नाम लेना तेरा
लेकिन कमबख्त
अब कहां हे मेरा
इस मामले में
मेरे दिल पर इख्तियार
बस अब तो हे प्यार ही प्यार
और इसमें
हे तेरा ही इन्तिज़ार ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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