यूँ क्यूँ बेकार
करते हो तुम
मेरी मनुहार ,
बस यूँ ही तेरी हर
बात हे
मुझे स्वीकार ,
मेरे होंटों पर
रखी थीं
जब उंगलियाँ
तुमने
तभी मेने समझ लिया था
के तुम्हे
हो गया हे
मुझ से प्यार ,
बात तेरी प्यार की
मां तो लूँ में मगर
देख ले
सामने खड़ा हे
सारा बेरहम संसार ,
लाकह सोचता हूँ
अब तो छोड़ दूँ
नाम लेना तेरा
लेकिन कमबख्त
अब कहां हे मेरा
इस मामले में
मेरे दिल पर इख्तियार
बस अब तो हे प्यार ही प्यार
और इसमें
हे तेरा ही इन्तिज़ार ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)