ना तुम हो
धर्म के दुश्मन
न मुझको हे
दीन से नफरत ,
मगर हम क्या करें
ज़ालिम सियासत
हमें लूट लेती हें
गवाहों से
वकीलों से
कभी
झुन्ति दलीलों से
लगाकर
लम्बी तारीखें
अदालत हमें
लूट लेती हें।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
17 अक्तूबर 2010
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लूटने वाले तो हर ओर हैं खुद ही सजग रहना होगा.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना..
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