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02 अक्तूबर 2010

वेश्य के स्वाभाविक कर्म

क्र्शिगोर्क्ष्यवानिज्य्म वेश्यक्र्म स्वभावजम ।
परिचर्यात्मक कर्म शुद्र्स्यापी स्वभावजम ॥
खेती, गोपालन और क्रय विक्रय रूप सत्य व्यवहार यह वेश्य के स्वाभाविक कर्म हें तथा सब वर्णों की सेवा करना शुद्र का भी स्वाभाविक कर्म हे।
अध्याय १८ के श्लोक ४४ में कहा गया हे के वस्तुओं के खरीदने और बेचने में तोल,नाप,और गिनती आदि में कम देना अथवा अधिक लेना एवं वस्तुओं को बदल कर या एक वस्तु में दूसरी खराब वस्तु मिलाकर देना दाम ठहरा कर अधिक दाम लेना झुंट कपट चोरी और जबरदस्ती से अथवा किसी भी तरह से किसी के हक को मारना गलत हे कुल मिला कर दोष रहित जो सत्यता पूर्वक पवित्र वस्तुओं का व्यापर हे उसका नाम सत्य व्यवहार हे । दोस्तों यही बात मुस्लिम पवित्र ग्रन्थ कुरान के माध्यम से भी इश्वर ने कही हे लेकिन कितने हिन्दू और कितने मुसलमान ऐसे हे जो बड़ी बड़ी दादी रख कर और बड़े बड़े तिलक टिके लगाकर अल्लाह और भगवान के प्रति आस्था दिखाते हें और फिर खुदा इश्वर के इस आदेश के खिलाफ लुत्ट्स मचाते हें तो बताओं क्या यह अधर्म नहीं क्या ऐसे अधर्मियों का नाश हमारा दायित्व नहीं अगर हाँ तो फिर लग जाओ आज से ही मुन्ना भाई। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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