तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
10 अक्तूबर 2010
प्रेस क्लब कोटा के चुनाव के अप्रत्याशित परिणाम
कोटा प्रेस क्लब के द्विवार्षिक चुनाव में आज पिछले कई सालों से जमे बेठे लोगों को उस वक्त धक्का लगा जब उनके समर्थकों में से कई उम्मीदवारों को करारी हर झेलना पढ़ी , प्रेस क्लब कोटा में आदरनीय प्रद्युम्न शर्मा का काफी लम्बे समय से कार्यकारिणी पर कब्जा था पहले वोह खुद लगातार जीतते थे फिर उन्होंने अपने समर्थकों को चुनाव लदा कर जीता दिया था , इस बार फिर उनका खेमा यही करिश्मा करना चाहता था लेकिन कुदरत को कुछ और मंजूर था पहले तो उनके खेमे में टूट फुट मान अपमान का खेल चला फिर मान मुनव्वल का खेल होने लगा नतीजा फिर से बिखरा ग्रुप एक हो गया लेकिन इधर दुसरे गुट को भी मतदाताओं का भरी समर्थन था और उन पर दबाव था के इस बरत तो कुछ बदलाव होना ही चाहिए बस इसीलियें में खुद और मेरे बड़े भाई कय्यूम अली,भाई जयनारायण जी सक्सेना। ,विजय्नारयं जी सक्सेना नरेश उपाध्याय, मनोहर परिक , बदरी प्रसाद गोतम , गजेन्द्र व्यास जी , मॉल सिंह शेखावत ने एक ग्रुप बनाया और फिर बस मिल कर चुनाव लड़ा इस चुनाव में हमारी कोशिशें काम आई और हमारे पेनल में से पूंजीपतियों के खिलाफ चुनाव लड़ने के बाद भी खुद में अख्तर खान अकेला, गिरीश गुप्ता कार्यकारिणी में सर्वाधिक वोटो से जीत कर आये जबकि हरिमोहन शर्मा महासचिव के पद पर और आदरनीय मालसिंह जी शेखावत कोषाध्यक्ष के पद पर चुनाव जीत कर आये , कुल मिला कर इस चुनाव में महाभारत का पूरा रिहर्सल रहा कोर्व और पांडवों का युद्ध था सामने सभी मेरे अपने लोग थे चुनाव उनके सामने लड़ने और उनके खिलाफ अपने पेनले को उतरने में खुद हम अपने आप को शर्मिंदा महसूस कर रहे थे लेकिन गीता के ज्ञान के आधार पर यह चुनाव लड़ा जा रहा था इसलियें हम चुनाव मैदान में थे सामने हमारे बड़ी सेना थी साधन सम्पन्न लोग थे लेकिन बस हमारे साथ अर्जुन , भीम वगेरा सभी थे हमारे सामने सभी लोग हमारे अपने चुनाव लद रहे थे कार्यकारिणी के लोग सभी मेरे अपने भाई थे जबके अध्यक्ष पद के धीरज कुमार तेज मेरे छोटे भाई , नीरज गुता वरिष्ट उपाध्यक्ष मेरे अपने और महासचिव के पद पर सुबोध जेन मेरे अति निकटतम सुख दुःख के साथी थे , सत्यनारायण बर्ग सर्वश्रेष्ट व्यवहार कुशल व्यक्तित्व के धनी थे जबकि पवन परिक सह सचिव पद पर मेरे भाई रिछपाल परिक के सुपुत्र पवन पारिक उम्मीदवार थे कुल मिलाकर जिनसे हमे लड़ना था वोह सब हमारे अपने थे उनके आगे हमें ना तो चनाव लड़ने का साहस था और नाही हराने की तमना हमारे दिल में थी लेकिन क्या करें महाभारत थी सत्य की जंग थी इस लियें लदे और हम काफी हद तक आपके आशीर्वाद से कामयाब भी हुए लेकिन दुसरे गुट के जो लोग हारे वोह सभी मेरे अपने थे उनके हरने का मुझे उनसे भी कहीं कई गुना ज्यादा अफ़सोस हे लेकिन शायद कुदरत को यही मंजूर था अब खुदा से दुआ करो के कोटा प्रेस क्लब में मिल जुल कर कम हो और कोटा के पत्रकारों ,उनके परिवारों के कल्याण के लियें सभी प्रकार की कार्यवाहियां हों जिसे कोटा के प्रेस क्लब का चमत्कारिक विकास हो । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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