यूँ एक
अच्छे
पड़ोसी का
हक निभा दूंगा ,
वोह नफरत की आग में
जलाएगा भी अगर
मेरे घर को
तो भी
में
पड़ोसी की ख़ुशी के लियें
इस नफरत की आग को
मोहब्बत की हवा दूंगा।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
01 अक्तूबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
न पड़ोसी का हक निभा दूंगा ,
जवाब देंहटाएंआपकी रचना चोरी हो गयी ..... यहाँ देखे
http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_5427.html