आपका-अख्तर खान

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27 सितंबर 2010

एक दुसरे से कतराने लगे हें

बरसों से रुका हे
मन्दिर मस्जिद का फेसला
आज जब फेसले की खबर आई हे
इधर देखो उधर देखो
आदमी ही आदमी से कतराने लगे हें
इधर हो चाहे उधर
चारों तरफ फिर से
दंगे फसादात के
बादल मंडराने लगे हें ,
नफरत ,साम्प्रदायिकता
इस देश के लियें
बस अब कलंक हो गया हे
इसीलियें इस देश में
अमन ,सुकून के हालत
डगमगाने लगे हें
नेता हो चाहे हों धर्म गुरु
जिसे देखों यह सब
कुर्सी की दोद में
खून की कीमत
बस भुलाने लगे हें
और देश से नहीं रहा हे
इन लोगों को जरा भी प्यार
इसीलियें तो
यह सभी लोग
फर्ज़ अपना भुला कर
जयचंदों का इतिहास
दोहराने लगे हें
हमारा क्या
हम तो निकले हें
इंसानियत की तलाश में
इसीलियें बस एक तरफ
खड़े होकर
खामोशी से
एकता , अखंडता, प्यार और सद्भाव के
चिराग जलाने लगे हें ,
देखो दोस्तों इधर देखो ,उधर देखों
चारों तरफ से अमन के परवाने दीवाने लोग
इस देश को फिर से बचाने आने लगे हें ॥ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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