जरा उंचा उठो , जरा और ऊँचा उठो
मेरे देश को आसमान से
झाँक कर देखो
जरा और ऊँचा उठो
कहकशां के तारों से
मेरे देश को झाँक कर देखो
यहाँ प्यार हे , तकरार हे
अपनापन हे ,सदभाव हे
देश को दुश्मनों से बचाले
बस जिधर देखो
अमीर हो चाहे गरीब हो
सभी का यही भाव हे
जरा और उंचा उठो
आसमान की इतनी बुलंदियों पर
पहुंच कर भी तुम आज
मेरे देश की बुलंदी से
बहुत बहुत नीचे हो
क्योंकि यहाँ रोते हुए को हंसाया जाता हे
नंगो को कपड़ा देकर भूखों को खाना खिलाया जाता हे
बस यही तो हे मेरे इस देश की बुलंदी
मेरे इस देश की ऊँचाई
यहाँ हिन्दू हो चाहे हो मुसलान
सिख हो चाहे हो इसाई
मन्दिर हो चाहे हो मस्जिद
सभी लोग कहते हें
दोनों जगह बस इंसान जाते हें
और धर्म कोई भी हो
काशी मक्का के साथ साथ नहीं
बल्के इनसे पहले
हिन्दुस्तान चाहते हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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