ऐ इन्सान
यह हे
हिन्दुस्तान
क्यूँ ढूंढता हे
मुझे तू
मन्दिर ,मस्जिद में
जरा झाँक कर तो देख
अपने गिरेबान में
यह मानवता हे
ना अल्लाह हे ना भगवान हे
बस वहीं यह सब हें
जहां बस इंसान और इंसान हें
पत्थर की चंद दीवारों को
क्यूँ कहते हो इबादत गाह
अरे सोच लो जहां न सुकून हो
जहां ना हो प्यार
बस जिसके खातिर
चारो तरफ हो तकरार ही तकरार
फिर ऐसी जगह को
तुम ही बतलाओ
क्यूँ हम ना कहें कत्ल गाह ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
29 सितंबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
...बहुत सुन्दर ... बेहतरीन !!!
जवाब देंहटाएं