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29 सितंबर 2010

फेसले की घबराहट में दोस्ती का प्यार

दोस्तों , दोस्ती की एक अजीबो गरीब दास्ताँ
एक तरफ देश में रुके हुए फेसले के नाम पर
अलग अलग पक्ष होने से हिन्दू मुस्लिम भाईयों के बीच दरार की सम्भावनाओं को देख कर देश स्तब्ध हे और यह प्यार भाईचारा सद्भावना बनी रहे इसके लियें देश का हर शख्स प्रयासरत हे , एक तरफ तनाव के हालातों में देश प्यार का माहोल बनाने की कोशिशों में हे , दूसरी तरफ आज एक घटना ने मुझे झकझोर दिया में सोचने लगा के नफरत फेलाने वालों के मुंह पर कुछ दोस्ती की दाताने तमाचा हे और देश इसी दोस्ती के प्यार की खुशबु से महक रहा हे , आज कोटा में वकील सईद एहमद खान दिल्ली के अपने एक भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठतम अधिकारी से फोन पर बात कर रहे थे यह दोस्त पंडित जी सईद एहमद वकील साहब के पुराने कोलेज के बेतकल्लुफ साथी रहे हें लेकिन फोन पर जब सईद एहमद ने अपने इस दोस्त से बेतकल्लुफी छोड़ कर तकल्लुफ का लहजा अपनाते हुए किसी मामले में अदब अखलाक अपनाते हुए आपन जनाब से बात की तो बस जनाब दिल्ली में बेठे अधिकारी पंडित जी दोस्त से नाराज़ हो गये और उन्होंने कहा फॉर भाभी को दे जब फोन भाभी के पास गया तो अधिकारी महोदय ने कहा के क्या सईद पागल हो गया हे इससे में बात नहीं करूंगा और दिल्ली कोटा से दूर हे नहीं तो कोटा आकर उसका चमडा तोड़ देता बस यह सुनकर फोन वापस से सईद वकील साहब ने लिया और पुरानी दोस्ती के लहजे में बेतकल्लुफी भाषा में जब इन अधिकारी पंडितजी की अबे तबे कर ऐसी की तेसी की तो फिर यह जनाब पंडित जी दोस्त ठहाका मारकर हंस पढ़े और कहने लगे अब हुई ना दोस्ती वाली बात साला दोस्ती में दूरियाँ बढ़कर बात करता हे इन दोनों दोस्तों का प्यार और सद्भाव देख कर में सोचने लगा के इस देश में जब सईद और शुक्ल जी जेसे लोगों की दोस्ती ज़िंदा हे और कृष्ण भगवान से सुदामा की दोस्ती की मिसाल जिंदा हे तो फिर इस देश में कितनी ही साम्रदायिकता फेलाने वाले भेडिये हों यहाँ एकता अखंडता और प्यार सद्भाव को कोई खतरा नहीं हो सकता क्यूँ जनाब मेने ठीक कहा ना अगर गलत कहा हे तो मेहरबानी करके मेरी गलती भी सुधारें । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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