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02 सितंबर 2010

भरे पढ़े हें बेशर्मी के किस्से

किस्से क्या सुनाऊं
में तुम्हें
भरे पढ़े हें यहाँ
नेताओं और जनता के
बेशर्मी के करोड़ों किस्से ,
काण्ड हादसों घोटालों से,
फिक्सिंग और हवालों से
भरे पढ़े हें करोड़ों किस्से
क्या सुनाऊं में तुम्हें
यहाँ के नेताओं की
बेशर्मी के किस्से ,
जब से खेल खेले हें
गेहूं सडाने के मंत्री पंवार ने
क्या उम्मीद करें
न्याय की न्यायमूर्ति से
वोह भी अब तो
मंत्रियों के आगे आंसू बहाने लगे हें
भूल जा पुराने देश और देशभक्ति का जज्बा रखने वाले लोगों को
य्हाना कभी मानव अंग
कभी मानव बम
कभी मानव तस्करी
के नाम पर कबूतरबाजी होती हे
लुटती हें बालाएं घर में
जलती हें बहें ससुरालों में
सडकों पर जाने गिरती हें
यहाँ हर तरफ दरिंदगी दिखती हे
अब उठेंगी माताएं
लेंगी अंगडाइयां
बच्चे फिरजनेंगी
इस देश को बचाने को
किस्से क्या सुनाऊं में अभी
छोड़ों बच्चे जो जने हें अभी माताओं ने
बढ़े उनको होने दो
शायद वोह कुछ ऐसा कर जाएँ
के किस्से बन जाएँ
मेरे पास तुम्हें
गोरव से सुनाने को ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. आप की रचना 03 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/09/266.html


    आभार

    अनामिका

    जवाब देंहटाएं

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