आपका-अख्तर खान

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26 सितंबर 2010

दरिन्दे

देखो तुम भी देखो
यही हें
खुदा के बंदे
जो आज
हो गये हें दरिन्दे ,
चारों तरफ अन्धेरा हे
भूख हे ,गरीबी हे , भ्रस्टाचार हे
जिधर नजर घुमाओं
उधर देखो
बस म़ोत के फंदे ही फंदे
हम जनता हें
हम बेचारों का क्या
हमारे
नेता तो हें
सय्याद हमारे
और हम
बस इन व्यापारियों के
बस केद में हें परिंदे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

    जवाब देंहटाएं
  2. ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

    जवाब देंहटाएं

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