देखो तुम भी देखो
यही हें
खुदा के बंदे
जो आज
हो गये हें दरिन्दे ,
चारों तरफ अन्धेरा हे
भूख हे ,गरीबी हे , भ्रस्टाचार हे
जिधर नजर घुमाओं
उधर देखो
बस म़ोत के फंदे ही फंदे
हम जनता हें
हम बेचारों का क्या
हमारे
नेता तो हें
सय्याद हमारे
और हम
बस इन व्यापारियों के
बस केद में हें परिंदे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
26 सितंबर 2010
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बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
जवाब देंहटाएंब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
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