जिंदगी की राह में
वोह दो कदम भी
ना चल सका मेरे साथ ,
बेवफा कोन हे
देखो फेसला हो गया आज ,
नफरत कल जो
फेला रहा था
मेरे खिलाफ
वोह देखो
लोगों को दिखाने के लियें
मिला रहा हे
मुझ से दोस्ती का हाथ। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
28 सितंबर 2010
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अख्तर साहब आपकी दोनों रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं,
जवाब देंहटाएंआपने अभी मेरे ब्लॉग (अकेला कलम...) पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी दी थी जिसकी अंतिम की कुछ पंक्तियाँ मैं समझ नहीं पाया, जिसमें शायद आपने कुछ पूछा है, कृपया अंतिम की पंक्तियाँ हिन्दी में लिख देते तो मैं आपके प्रश्नों का जबाब ठीक ढंग से दे पाता.
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आपज जरूर आहत हुए हैं, खैर कोई बात नही ये जिन्दगी की तासीर हैं।
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