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01 सितंबर 2010

खामोश गुलशन

बताओं क्यूँ
छाई हे खामोशी
इस खुशनुमा
गुलशन में
कल जहाँ थे
फल खुशबूदार
आज वोह फुल
क्यूँ हे कुम्लाहे हुए
कलियाँ जो थीं खिलने को
वोह क्यूँ हे मुरझाई हुई
भरोसे जिसके छोड़ा था
यह गुलशन मेने
आज कहां हे उसकी मसीहाई
ना खुशबु बचा सके
न बचा सके
फूलों और कलियों को
बताओ केसी हे उनकी
यह बे हयाई ,
आमद की हमारे
अब फिर से
चेह्की हें चिड़ियें
महकी हे खुशबु
खिले हें यह फुल
खिल खिलाई हे कलियाँ
मुस्कुराए हें फुल ।

अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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