हे कोई जो तेरे लियें
फूलों में खुशबु लिए
चलता रहा हे कोई
चाँद सूरज की तरह
छुपता रहा हे
तेरे लियें कोई
दास्ताँ जीवन की
लिखता रहा हे
तेरे लियें कोई चुपचाप
तेरे लियें नदियों की कलकल में
मचलता रहा हे कोई
तेरे लियें मचला हे
कितनी बार दिल
शुरू कहां से करूं यह दास्तान
सिलसिलों की सजधज में
भलता रहा हे तेरे लियें कोई
खुद की जिंदगी की
किताबों के पन्ने
पलटता रहा हे तेरे लियें कोई।
हर कदम पर लड़ ख्डाया हे
ठोकरे कहा खाकर भी
सम्भलता रहा हे फिर भी
तेरे लियें कोई
म़ोत आई सेकड़ों बार
आगोश में लेने उसे
तुझे पाने की हसरत में
जिंदा रहा हे
तेरे लियें कोई।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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