बहुत हें ऐसे लोग
जो बस
खुद के दुखों के
गीत गाते हें ।
ईद हो
होली हो चाहे दिवाली
हमेशां
बस और बस
मातम हे मनाते हें ।
कह दो उनसे
आज दुनिया उन्हीं के
इशारे पर नाचती देखी
जो परवाह
किसी की नहीं करते
और वक्त आने पर
जलती चिताओं पर भी बेठ कर
वीणा हें बजाते ।
कह दो उनसे आज
दुनिया उन्हीं की हे
जो मोत के आगोश में भी
खुशियों की फोलादी
सेज हें सजाते ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
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