आपका-अख्तर खान

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23 अगस्त 2010

चांद की चमक

हे चाँद
कहां हे
तेरी चमक,
चमक नहीं
फिर तू क्यूँ
इतराता हे ,
सोचता हु
बुझा दूँ
इस चांदनी में
उसे ढूंढने की आस
क्यूँ की
तू तो धुंधला हे
उसकी चमक
तेरी चांदनी को
फीका कर देगी
और तब होंगी
उसके चेहरे की चमक से
मेरी आँखें चकाचोंध
बस इसी डर से
सोचता हूँ
तेरी चांदनी में
उसे ढूंढने की
जिद खत्म कर दूँ ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

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