हे चाँद
कहां हे
तेरी चमक,
चमक नहीं
फिर तू क्यूँ
इतराता हे ,
सोचता हु
बुझा दूँ
इस चांदनी में
उसे ढूंढने की आस
क्यूँ की
तू तो धुंधला हे
उसकी चमक
तेरी चांदनी को
फीका कर देगी
और तब होंगी
उसके चेहरे की चमक से
मेरी आँखें चकाचोंध
बस इसी डर से
सोचता हूँ
तेरी चांदनी में
उसे ढूंढने की
जिद खत्म कर दूँ ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
23 अगस्त 2010
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बहुत सुन्दर्।
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