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26 अगस्त 2010

शहंशाह के ताजमहल


ऐ शहंशाह
के ताजमहल
तेरे भी
खेल निराले ,
जिसने तुझे
बनाया ,संवारा
ज़ालिम शहंशाह से
उन्हीं के हाथ
कटवा डाले,
ऐ शहंशाह
के ताज महल
तेरे भी
खेल निराले ,
जिसकी जिंदा साँसों
ज़िंदा धडकन
के लियें
बनाया तुझे
उन्हीं के मकबरे
तेरे कुचे में
तुने बनवा डाले,
बनवाया जिस
शहंशाह ने तुझे
उस शहंशाह को
मिले ऐसे बेटे
जो उसे जेल में डालें,
ऐ ताजमहल
तेरे भी
खेल निराले ,
लाखों गरीबों ,लाखों मिसकीनों
की सिसकियाँ
गूंजती हें
तेरे तहखाने में
क्यूँ की उन गरीबों का हक
उन्हें ना मिला
और खर्च किया
सिर्फ तुझे बनाने में
वाह रे ताजमहल
तेरे भी
खेल अजब निराले ,
कहने को हे तू
सातवा अजूबा
लेकिन फिर भी
प्रदुषण से
काला होने का
डर बता कर
तुने सेकड़ों
उद्योग बंद करवा डाले
वाह
ताजमहल
तेरे खेल
अजब निराले।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

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