आपका-अख्तर खान

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26 अगस्त 2010


जिंदगी
कितनी ही
ज़ालिम हो
फिर भी
म़ोत से
बदतर हे ,
नफरत
कितनी भी
गहरी हो
फिर भी
प्यार से
बहुत कमतर हे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई अख्तर साहिब... जीवन का दर्शन कितना वृहद है और कितना संक्षिप्त ........ समझाना तो मन को ही है न.

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  2. badhiya baat...mot ko mout our he ko hai karen to kavita our acchi ho jaayegi.

    जवाब देंहटाएं

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