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19 अगस्त 2010

कोटा का परिचय गोपाल क्रष्ण भट की जुबां में


यह पत्थरों का शहर हे
बेजुबान बुत सा खड़ा
इसके सीने में , भरा गुबारों का जहर हे,
यह पत्थरों का शहर हे।
यहाँ पलती हे जिंदगी नासूर सी
यहाँ जलती हे जिंदगी काफूर सी
यहाँ भक्ति हे जिंदगी सुरूर सी
यहाँ तपती हे जिंदगी तंदूर सी।
एहसान फरामोश इस शहर का
अजीबो गरीब जूनून हे
पत्थरों के सीने में यहा
हरदम उबलता खून हे
सूरज के खोफ से झुलसता तपता यह अंगारों का शहर हे ।
यह पत्थरों का शहर हे ।
किसी के कदमों में फलक
किसी की किस्मत में फलक के सितारे हें
किसी के आशियाने की निगहबान हें सडकें
किसी के आशियाने सडक के किनारे हें।
पशेमा तक लिए फिरते हें जलजले हाथों में
चमन के फूलों का यायावर घूमना दुश्वार हे बागों में
यहाँ हर रात बदलते चाँद पर बरसता सितारों का कहर हे
यह पत्थरों का शहर हे।
पत्थर भी हें इस शहर के जहां में मशहूर
कोटा साडी का हे जलवा चर्चा हें कचोरी के दूर दूर
किस्में नमकीन की हें लाजवाब बाफले बाटी क्त का हे दस्तूर
चम्बल नदी का यह वरदान हे
जहां श्रवण भी समझा था माता पिता का बोझ
उन किनारों का हे यह शहर यह पत्थर का शहर हे।
होड़ लगी हे गगन चुम्बी इमारतों की लम्बाई बढ़ी हे
कद छोटा हुआ हे इंसान का चोड़ाई बढ़ी हे
झूंठ का मुलम्मा घुंस की मोटाई बढ़ी हे
यारी दोस्ती मोहब्बतें कम हुई फसादात बढ़े हें
इस ख्क्षाये श्र में आज वही रहेगा
जिसका फोलाद से बना जिगर हे
चलो आकुल इक छोटा सा नशें ही बनाएं
पलक पर्दे हों नयन दर्पण ही बनाएं
बाहों का हो डॉ दोस्तों को बंधन बनाएं
बेठें मिले यारों की अंजुमन ही सजायें
बंसी ना बजायेगा नीरो न फिर रोम जलेगा
घर घर में दीप जलेंगे गले दुश्मन भी मिलेगा
शहर ना उज्देगा इसमें गर नाखुदाओं का बसर हे
फिर ना कहेगा कोई यह सिर्फ पत्थरों का शहर हे
फिर ना कहेगा कोई यह सिर्फ पट्ठों का शहर हे ।
गोपाल क्रष्ण भट आकुल की कविता प्रस्तुत करता अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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