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19 अगस्त 2010

फिर चलने लगी सर्द हवा


फिर चलने लगी सर्द हवा मेरे शहर में
फिर उठने लगा दर्द नया मेरे शहर में
लुट कत्ल ओ गारत बदस्तूर दिन ब दिन
खोफ से सही हे फजां मेरे शहर में ।
आज खासो आम के दरमियाँ नहीं हे भेद
मुफलिसों को भी गरीबों से नहीं हे खेद
क्या गीता बाइबिल कुरान उपनिषद और वेद
बंद हे बसते में और उलेमा हे केद
क्यूँ नहीं इलाजे जूनून मेरे शहर में
फिर उठने लगा दर्द मेरे शहर में
फिर चलने लगी सर्द हवा मेरे शहर में
कहने को तालीम गाह मेरा शहर हे
तालिफे कुलूब राहे आज मेरा शहर हे
पानी सा साफ़,पाक्दिल पानी पानी हे आज
शर्मसार जुनूनियों से मेरा शहर हे
मखमली पेबन्द लगे हें मेरे शहर में
फिर उठने लगा दर्द नया मेरे शहर में
फिर चलने लगी सर्द हवा मेरे शहर में
न्याय कटघरे में दम तोड़ रहे हें
अपराधी मूंछ फख्र से मरोड़ रहे हें
इन हादसों में हम भी कम गुनाहगार नहीं
सच्चाई से हमेशा मुंह मोड़ रहे हें
लगता हे जन विवाद होगा मेरे शहर में
फिर उठने लगा दर्द नया मेरे शहर में
फिर चलने लगी सर्द हवा मेरे शहर में
बदलना होगी तुमको इस शहर की तकदीर
उठानी होगी कलम की तपती हुई शमशीर
जनने होंगे माताओं को बाँकुरे रणवीर
गड़ने होंगे सनतराश को बुद्ध और महावीर
न फिर उठेगा दर्द नया मेरे शहर में
न फिर चलेगी सर्द हवा मेरे शहर में ............गोपाल कृष्ण भट्ट आकुल
प्रस्तुत करता अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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