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19 अगस्त 2010

राजीव होते तो ना देश ऐसा होता ना कोंग्रेस ऐसी होती

आज देश के पूर्व प्रधानमन्त्री स्वर्गीय राजीव गांधी का जन्म दिन हे आज का दिन इस देश के लियें गोरव का दिन था जो देश के मान ,सम्मान,प्रतिष्ठा,विकास को नये आयाम देने वाला एक नेता का जन्म हुआ था प्रारम्भ से ही राजनीति से दूर रहने वाले राजीव गाँधी सब कुछ छोड़ कर अपने शोक के तहत पायलेट बने लेकिन उनका पायलेट बनना देश के लियें शुभ रहा राजीव जी ने हवाई जहाज़ में क्म्प्युतिक्र्त आधुनिक उपकरण देख कर जब देह सम्भाला तो हवाई जहाज़ की गति से देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऊँची उड़ान में शामिल करने के लियें कम्प्यूटर,सेटेलाईट की तकनीक उन्होंने देश में लागू की जो नहीं समझते थे उन्होंने उनका मजाक उड़ाया लेकिन आज वही लोग उनका लोहा मानते हें जो अनुभवी लोग उन्हें कल का बच्चा राजनीति का कच्चा कह रहे थे जब उन्होंने प्रधानमन्त्री पद पर राजीव की कार्यशेली देखि तो वोह हतप्रभ रह गये , सन्गठन कोंग्रेस को भी उन्होंने नये सिरे से ज़िंदा किया , देश के बेईमानों को नंगा करने के लियें उन्होंने एक नारा दिया के ह एक रुपया जनता के लियें देते हे लेकिन इस तन्त्र में केवल १५ पैसा ही जनता तक पहुंचता हे ८५ पेसे नोकरशाह और राजनीतक लोग खा जाते हें बस ई के बाद से चोर चोर मोसेरे भाई बन गये और राजीव के पीछे पढ़ गये लेकिन राजीव न थके ना हरे वोह तो बस चलते रहे और आखिर कुछ राजनितिक लोगों ने जो अभी सत्ता में हे लापरवाहियों से इस लाल को मरवा दिया यहाँ तक कहते हें के इसका सबसे बढ़ा सबूत अगर प्रभाकरन जिंदा पकड़ा जाता और वोह राजीव की हत्या के बारे में सच उगलता तो शायद देश की राजनीति में उबाल आ जाता लेकिन इस एक मात्र गवाह को ठंडा कर दिया गया और अब लोग मजे कर रहे हें , दोस्तों यह एक सच हे के कोंग्रेस में आज राजीव होते तो कोंग्रेस की ऐसी दुर्गति नहीं होती देश के प्रधानमन्त्री अगर आज राजीव होते तो देश आज २१ वी सदी में नहीं ५१वि सदी में चल रहा होता लेकिन बस कुदरत का खेल हे देश में गधे पंजीरी खा रहे हें की कहावत को सच साबित कर बताना था इसी लियें कुदरत के कठोर निणर्य ने राजीव को हमसे छीन लिया । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. अख्तर भाई,

    आपके विचारों से मैं सहमत हूँ किसी राजनैतिक वजह से नही,बल्कि एक आम भारतीय के तौर पर। श्री राजीव गांधी के विचार अपने समय से बहुत आगे थे और शायद यह भी वज़ह हो सकती है कि लोग अपने स्वार्थ के लिये उन्हें नापसंद करते हो। ये तो हर समय का सच फिर वो चाहे यीशु क्यों न हो या गैलिलियो, न्यूटन या कोई और अपने समय से बहुत आगे का सच न तो भीड़ को समझ आता है और न ही उनक्के इस अज्ञान का सुख भोगती सत्ता को.....वो सदा ही सिरफिरे/मूर्ख या पागल ही समझे जाते रहे हैं।

    विचारोत्तेजक लेख के लिये साधुवाद....

    राजीव गांधी को नमन....

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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