आपका-अख्तर खान

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18 अगस्त 2010

में पागल निकला


पानी की तलाश में
कुआ मिला तो भी में
प्यासा निकला
लोग कहते हें
में तो पागल निकला ,
बहार आई
जिंदगी में तो
में
जंगल की तरफ चल निकला
लोग कहते हें
गुलों की खुशबु
छोड़ गया
देखो यह कमबख्त
केसा पागल निकला ,
जीना आसान तो
नहीं था
उसे बिछुड़ कर
देख हाथों की लकीरों को
फिर भी में जी निकला
लोग कहते हें देखों
वोह केसा पागल निकला
चलो अच्छा हुआ
काम आगया
पागलपन
वरना अपनी हरकतों पर
दुनिया को समझाने
हम कहां जाते
नफरत,मार काट
दुःख भी इस बेवफा दुनिया में
बताओं हम पागल नहीं होते
तो ज़िंदा रहकर भी
केसे मुस्कुरा पाते............
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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