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06 अगस्त 2010

मेरे दिल को यह क्या हुआ


वोह जिसके मिलन को
कल दिल मेरा
तडपता था ,
आज उसका नाम आते ही
मुझे जहर
क्यूँ लगता हे ,
मेरे दिल को
यह क्या हुआ
जिसकी यादें थी साँसों में मेरी
जिससे मिलन की आस थी मेरी
खुशबु से जिसकी महकता था में
आज देखो
नफरत की गर्मी से उसी की
दहकता हूँ में ,
सोचता हूँ मेरे दिल को
अचानक यह क्या हुआ
फिर सोचता हूँ
प्यार,वादे,मिलन की आस
कहने को तो अच्छी बात हे
लेकिन इसे पाने के लियें
जमीर अपना बिक जाए अगर
तो कितनी बुरी बात हे,
सोचता हम मरता था जिन पर कल में
आज मिलने भर के उनके ख्याल से
डरा सहमा क्यूँ बेठा हूँ में ।
इलाही तू ही बता में क्या करूं
जो नहं थी मेरी
क्यूँकर में उसे याद करूं
सोचता हूँ मी दिल को यह क्या हुआ
आज फिर जागा हे जमीर
सारी शर्तें उनसे मिलने पर
सबको छोड़ने की जो थीं
आज उन्हें में तोड़ता हूँ
यह मेरे दिल को या हुआ
जिसके लियें छोड़ी थी दुनिया कल
आज उसे ही दुनिया के लियें
छोड़ा क्यूँ हे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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