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05 अगस्त 2010

फिर सुबह हो गयी


ओह देखो
फिर सुबह हो गयी
रात गयी ,करवटें गयी,याद गयी
ओह देखो
फिर सुबह हो गयी ।
रात थी तो बात थी
रात थी तो नींद में उनकी याद थी
ओह देखो
फिर सुबह हो गयी ,
अब सुबह से शाम तक
बताओ में क्या करूं
इन उजालों में
केसे उन्हें या करूं
ओह देखो
फिर सुबह हो गयी ,
फिर से बजने लगी घंटियां
फिर से होने लगी अज़ान
मुर्गा बोले कुकड़ू कुं
चिड़िया बोले चू चूं ।
ओह देखो
फिर सुबह हो गयी
अन्ध्रेरा जो पसंद था मुझे
उसे रौशनी खा गयी
फिर देखो सुबह हो गयी
ना जाने कब
अब फिर शाम होगी
उसकी यादें मेरी
सांसों में आम होंगी
ओह देखो
फिर सुबह हो गयी ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. ना जाने कब
    अब फिर शाम होगी
    उसकी यादें मेरी
    सांसों में आम होंगी
    too gud!

    जवाब देंहटाएं

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