आपका-अख्तर खान

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30 अगस्त 2010

बुझा दिए टिमटिमाते चिराग

बुझा दिए मेने
रात के अँधेरे में
टीम टिमाते चिराग
झील मिलाते अँधेरे में
यादें उनकी नहीं होती थीं ताज़ा
इसीलियें कर दिया अँधेरा मेने ।
सुबह हुई तो
मेरे दिल ने यह कहा
हसीन यादों की शमा
फिर से जला डालो
दफन हें मेरे सिने में
यादें आज भी उनकी ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी कविता लिखी है आपने .......... आभार

    कुछ लिखा है, शायद आपको पसंद आये --
    (क्या आप को पता है की आपका अगला जन्म कहा होगा ?)
    http://oshotheone.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर भावपूर्ण रचना...बधाई...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  3. हसीन यादों की शमा
    फिर से जला डालो
    दफन हें मेरे सिने में
    यादें आज भी उनकी ।
    " सच है न, यादे कहाँ पीछा छोडती हैं, दफ़न रहती हैं आस पास कहीं.....बस यूँही.."
    regards

    जवाब देंहटाएं

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