दोस्तों एक वक्त
यानी २५ साल पहले की बात हे
एक हे
जिसके लियें में रात दिन बेचेन था
जब भी वोह मिलती थी
दिल में घंटियां बजने लगती थी
ऐसा लगता था के मानो
घंटों उससे बात करता रहूँ
और यकीन मानिए घंटों बात करने के बात भी
मुझे तसल्ली नहीं मिलती थी
घंटों बात करने पर भी
ऐसा लगता था मानो क्षणिक मुलाक़ात हे
उसकी आवाज़ , उसका अंदाज़
ऐसा लगता था के वोह
मेरे रोम रोम में बस गयी हे
वोह अलग धर्म की थी
में अलग मजहब का था
बातचीत में साफ़ हुआ
दोनों को ही अपने अपने धर्म प्यारे हे
तो दोस्तों सामजिक मन मर्यादा के चलते
मेने और उसने दोनों ने
दिल की आवाज़ दिल में ही घोट कर रख दी
ना उसने मुझ से कुछ कहा
ना मेने उससे कुछ कहा
दोनों एक दुसरे के लियें बेचेन जरुर रहते थे
उसकी आवाज़ जब भी मेरे कानों में पढती थी
मानो कानों में शहद घोल दिया हो
हर पल हर क्षण बस में यही चाहता था के वोह मेरे पास मेरे साथ रहे
में उसकी मधुर आवाज़ सुनता रहूँ और नशीली आँखें निहारता रहूँ
एक दिन उसने कहा
में इंटर कास्ट मेरिज कर ली हे
मुझे धक्का लगा दिल बेठ गया
सदमा ऐसा लगा के सब कुछ भूल गया
बस में भी निर्णय लिया
के उसे भूल जाओ
लेकिन यह काम कितना मुश्किल होगा
मेने सपनों में भी नहीं सोचा था
वोह शादी ब्याह फंक्शनों में मिलती
कभी में कन्नी काट लेता कभी में चोर निगाहों से निहार लेता
एक दिन बरसों बाद
मेरे पास एक फोन आया
उधर से महिला की आवाज़ थी
पहचाना में कोन
मेने कहा नहीं
उसने कहा पहचानो
में अपनी महिला रिश्तेदारों के नाम गिनाना शुरू किया
लेकिन सब गलत था आखिर में वोह कातिल अंदाज़ में हंसी
और उसने कहा भूल गये में फलां
ओह सोरी माफ़ी चाहता हूँ मेरा फोन गडबड हे
इसलियें पहचानने में गडबड हुई
बस फिर से मेरे दिल दिमाग में
घंटियां बजने लगीं
में सोचने लगा आखिर प्यार भी क्या चीज़ हे
यद् रखो तो याद रहता हे
भूल जाओ तो भल जाते हें
लेकिन जिस आवाज़ को सुनने के लियें
में घंटों इन्तिज़ार करता था और बस उस आवाज़ को हमेशां सुनते रहना चाहता था
आज उसी आवाज़ को में पहचान ना सका
इसे जनाब क्या कहिये
बस यूँ कहिये
दिल की भी अजीब दास्ताँ हे यारों। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
29 अगस्त 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
acchhi maarmik kavita...
जवाब देंहटाएंलेकिन जिस आवाज़ को सुनने के लियें
जवाब देंहटाएंमें घंटों इन्तिज़ार करता था और बस उस आवाज़ को हमेशां सुनते रहना चाहता था
आज उसी आवाज़ को में पहचान ना सका
- इसे वक्त की मार कह लीजिये या वक्त का तकाजा.