एक साहब ने
बाहर से अपने घर
लेण्ड लाइन पर
फोन किया
घंटी बजी घन घन
फोन वफादार गन में ने उठाया
साहब ने हलो कहा
और मेम साहब से बात करवाने के लियें कहा
गन मेन ने जवाब दिया
साहब मेम साहब से बात नहीं हो सकती
वोह तो साहब के साथ
कमरे में बिजी हें
यह सुन कर साहब चिल्लाये अबे गधे में तो बाहर हूँ
फिर वहां कोण से साहब आ गये
गन मेन ने कहा साहब मेरे लियें कोई हुकम
साहब ने कहा जा दरवाज़ा खोल
दोनों के गोली मार दे
गन मेन ने मेम साहब और साहब के गोली मार दी
फोन पर जवाब दिया साहब मेने दोनों को मार दिया
अब आगे क्या करूं
साहब ने कहा जा दोनों को स्वीमिंग पुल में डाल दे
गन मेन ने साहब से कहा , साहब अपने यहा स्वीमिंग पुल तो हे ही नहीं
फोन पर साहब ने यह सुनते ही कहा अच्छा ओह रोंग नम्बर प्लीज़ ..............................
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
19 अगस्त 2010
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यह टिप्प्णी मेरे ब्लोग 'सुज्ञ' कर की गई एक टिप्प्णी के संदर्भ में है।
जवाब देंहटाएंअखतर ज़नाब,
आपकी इस बौद्धिक टिप्पणी से तो मैं हत्प्रभ रह गया।
शाकाहारी बे-ईमान होते है वो आंकडे अगर आपके पास हो तो कृपया शीघ्र
मुझे भेज दें, मैं मोमिनों को गेहूं का एक दाना न खाने दूं।
बहुत बढ़िया बात कही है |
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