आपका-अख्तर खान

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18 अगस्त 2010

उसके आंसू नहीं रुकते , मेरे दिल का खउन हुआ जाता हे

व्लोग्र भाइयों उसकी आँखों के आंसू नहीं रुकते और बिना किसी रिश्ते के मेरे दिल का खून हुआ जाता हे ,
आप समझेंगे यह क्या बेवकूफी हे लेकिन यह सच हे कुछ लोग जिंदगी में ऐसे जरुर होते हे जिन से चाहे कभी बात ना हो लेकिन नजरों से ही बहुत कुछ कहा और समझा जाता हे और मेरी जिंदगी का भी एक ऐसा कडवा सच हे जो सच्ची कहानी के रूप में आपके सामने प्रदर्शित सिर्फ इसलियें कर रहा हूँ क्योंकि में समझता हूँ के इससे आज के पुरुष और महिलाओं की कुंठित सोच में बदलाव का कुछ संदेश हे ।
दोस्तों आज से करीब २८ वर्ष पहले से शुरू हुई इस कहानी का प्रथम चरण हे जब में कुल १८ वर्ष का था और मेरे १८ वें जन्म दिन पर मेने कोटा के १८ बेंकों में खाते खुलवाने का मानस बनाया था , सभी बड़े १७ बेंकों में खता खुलवाने के बाद में जब शहर के बीचों बीच सबसे व्यस्तम बाज़ार में स्थित एक पुराने से कम चलने वाले सहकारी बेंक में पहुंचा ,तो बेंक में खाता खुलने का समय बंद होने वाला था केवल एक मिनट बचा था , में हाफ्ता काँपता बेंक में घुसा और मेने जेसे ही काउन्टर पर एक खबसूरत मूरत को बेठे देखा तो मेरे होश उड़ गये , अचानक मेरे मन में घंटियां बजने लगीं और में खुद चोर हो गया मन चाहता था बस इसी बेंक में बेठ जाऊं और इस हसीन खबसूरत चेहरे को निहारता रहूँ , लेकिन यह सम्भव नहीं था में कुछ सोचता की आचानक मधुर कानों में शहद घोल देने वाली आवाज़ आई प्लीज़ आप बताएं आपको किया चाहिए , यह सुन में उस मूरत को एक टक देखता रहा मेने हडबडा कर कहा ....
मुझे नया खाता खुलवाना हे ॥ उस मूरत ने गर्दन उठायी घड़ी की तरफ देखा वातावरण में खुशियाँ बिखेर देने वाली मुस्कुराहट के साथ उसने कहा वक्त हो गया हे मेने जब उस मूरत को जन्म दिन पर १८ खाते खोलने का लक्ष्य बताया तो वोह फिर मुस्कुराई और उसने वक्त खत्म होने की प्रवाह किये बगेर मुझे न्य खाता खोलने का फॉर्म दिया भराया और खाता खोल दिया ,बंक से मेरा वापसी का तो मन नहीं था लेकिन क्या करता अनमने मन से उस मूरत को निहारते हुए उलटे पाँव बेंक से वापस लोटना पढ़ा,॥
उम्र के मेरे इस पढाव पर मेरे लियें पहला मोका था जब मुझे इस तरह से किसी लडकी के प्रति आकर्षण पैदा हुआ था में रात भर जागता रहा , करवटें बदलता रहा सुबह हुई दस बज का इन्तिज़ार किया और फिर साइकल उठायी बेंक चल दिया , बेंक में जेस ही घुसा लाल साडी में यह खुबुर्ट मूरत बेंक में आती दिखी मुझे ऐसा लगा मानो जन्नत से किसी हर किसी प्री को उतार दिया गया हो , उसके कपड़ों में लगे परफ्यूम की खुशबु वातावरण में फेलती गयी , जब वोह अपने काउन्टर पर गयी तो मेने कल खोले गये खाते की पास बुक देने को कहा वोह फिर मुस्कुराई और उसने कहा प्लीज़ आप बेठिये में अभी तय्यार कर देती हूँ , में यही तो चाहता था लेकिन कुछ मिनटों एन ही इस मूरत ने पास बुक तय्यार की और मेरे हवाले कर दी , में फिर अनमने मन से बेंक से निकल गया ,
बस फिर क्या था में अपने अप को रोक ना सका और रोज़ किसी न किसी काम से बेंक आने जाने लगा चोर नजरों से इस मूरत को निहारने लगा उसकी हंसी,उसकी मुस्कुराहट,उसका बोलने का अंदाज़, काम करने का अंदाज़, कपड़े पहनने का सलीका और काम करने का तरीका सभी कुछ तो ऐसा था के बी दीवाना बनाने के लियें काफी था ।
एक दिन जब में बेंक गया तो यह सुंदर मूरत और निखर गयी थी इस चाँद में चार चाँद लग गये थे वोह सब को एक डिब्बे में रखी मिठाई खिला रही थी कारण पूंचा पता चला उसकी सगाई किसी अधिकारी से हो गयी हे , यह सुन कर मेरे पेरों तले ज़मीं खिसक गयी मेरी आँखे नम सी हो गयीं और ना जाने क्यूँ मेरा दिल जोर जोर से धडकने लगा के इतने में फिर वही मधुर आवाज़ क्या आप मिठाई नहीं लेंगे , मेने नजर उठायी तो उसकी मिलती नजरों से मुझे लगा के वोह मेरे दिल की कहानी समझ गयी हे लेकिन वोह फिर मुस्कुराई र कहा लीजिये यह मेरी सगाई की मिठाई हे , मेने मिठाई हाथ में ली और उसे पागलों की तरह देखता रहा वोह और दूसरों को मिठाई देने के लियें आगे बढ़ गयी ।
कुछ दिनों बाद वोह खुबसुरत दुल्हन के जोड़े में बेंक परिसर में खड़ी थी उसके हाथ में लिफाफा था और बेंक मेनेजर से वोह कह रही थी , लीजिये यह मेरा इसितिफा हे मेरे मिस्टर को सर्वी पसंद नहीं इसलियें उनकी ख़ुशी के खातिर ही में यह सर्विस छोड़ रही हूँ , मेनेजर ने कहा सविता जी तुम तो हमेशां कहा करती थीं के ओरत को स्वावलम्बी होना चाहिए फिर यह किया लेकिन उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया बस जो उनको हो पसंद वही बात हम करेंगे । में यह देख कर बहुत खुश था के वोह बहुत खुश थी लेकिन दिल इस ख़ुशी को मानने को तय्यार नहीं था में सोचने लगा उम्र के इस छोटे से पढाव में ५ साल बढ़ी इस महिला से मेरा यह केसा दीवानगी भरा लगाव हे , अपने मन से पूंछा अंतरात्मा को टटोला लेकिन कोई जवाब नहीं मिल पाया ।
मेरा बेंक में आना जाना कम हो गया करीब एक साल बाद में फिर जब में बेंक पासबुक की एंट्री करने पहुंचा तो बस जो कुछ मेने देखा मेरे पेरों ते ज़मीं खिसक गयी दिल बल्लियों उछलने लगा चेरा काला पढ़ गया और हार्ट अटेक किया होता हे पहली बार इसका एहसास किया , सामने ही खुबसुरत मूरत बैसाखी के सहारे मेनेजर के सामने हाथ बांधे खड़ी थी उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे वोह अपनी रुलाई रोकने की लाख कोशिशो में जुटी थी और कह रही थी प्लीज़ मेरा इस्तीफा वापस लेकर मुहे पुन नोकरी पर रख लो मेनेजर का जवाब था ऐसा कानून कहां मेने तो तुम्हें पहले ही कहा था लेकिन तुम कहा मानी , उसने फिर मेनेजर से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हुए कहा प्लीज़ मेरे प्रार्थना पत्र को हेड ऑफिस रेफर कर दो शायद कोई बात बन जाए , यह सब देख मेरा दिल खून के आंसू रो रहा था में कुछ समझ पाता इतने में ही बेंक के चपरासी ने मुझे देखा और कहने लगा भया क्या तुम्हें इन के बारे में पता हे मेने बदहवास होकर कहा नहीं बताओ क्या हुआ , उसने बताया के शादी के बाद यह बहुत खुश थीं पति की ख़ुशी के खातिर उसके कहने पर नोकरी छोड़ी और फिर कुछ दिनों बाद एक हादसे एन पति की तो म़ोत हो गयी ,हादसे में इनकी टांग कट गयी और फिर इनके पति की म़ोत के बाद ससुराल वालों ने भी इन्हें मनहूस कहकर घर से निकाल दिया , अब यह आपस इसी बेंक में नोकरी चाहती हे , बस मेरी तो वहीं रुलाई फुट पढ़ी में चक्कर खा कर गिर गया और जब उठा तो वही मूरत जो बुझी बुझी सी थी मेरे मुंह पर पानी छिडक रही थी , मेने कुछ नहीं कहा सीधे बाहर निकला और फिर बस खुदा से दुआ में लग गया के ऐ खुदा तू इसकी नोकरी लगा दे खुदा ने मेरी सुनी या फिर उस मूरत का भाग्य था उसकी बेंक में फिर से नोकरी लग गयी वोह आज भी उसी बेंक में प्रमोशन लेकर अधिकारी बनी हे लेकिन मेरा आना जाना इस बेंक से नहीं छुटा हे में आज भी नहीं समझ पाया हूँ के इस मूरत से मेरा रिश्ता क्या हे ............. मेरी और उसकी क्या पहचान हे लेकिन एक बात समझ गया आज के युग एन महिलाओं को पुरुषों पर निर्भर नहीं होना हाहिये उन्हें आत्म निर्भर होना चाहिए और कामकाजी महिलाओं स पुरुषों को परहेज़ कर उन्हें ठुकराना नहीं चाहिए या फिर शादी के बाद काम छोड़ने की शर्त नहीं रखना चाहिए क्योंकि विधि का विधान क्या हे यह कोई नहीं जनता ......... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी टिपण्णी मिलने से लिखने का उत्साह दुगना हो जाता है! इस हौसला अफ़जाही के लिए शुक्रिया!
    बहुत सुन्दरता से आपने हर एक शब्द लिखा है ! पढ़कर बहुत अच्छा लगा! ये बात तो सौ फीसदी सही है कि महिलाओं को आत्म निर्भर होना चाहिए! हालाकि आज के ज़माने में करीब करीब सारी महिलाएं आत्म निर्भर हैं और हर काम में पुरुष से आगे हैं! उम्दा प्रस्तुती !

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  2. akhtar khan ji,
    pahali bar aapke blog par aai hun.aapka lekh kahun ya aapkiaapbeeti par bhaut hi dil ko chhoone wali rachna.bahut hi sahi lagi aapki akheer ki panktiyan ,kash! sabhi aapki hi tarah hi sochte----
    poonam

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