कोटा के जनाब अहमद सिराज फारुकी की गजल पेश हे
बढ़ी हे मुल्क में दोलत तो मुफलिसी क्यूँ हे
हमारे घर में हर इक चीज़ की कमी क्यूँ हे
मिला कहीं जो समुन्द्र तो उससे पूछुंगा
मेरे नसीब में आखिर यह तश्नगी क्यूँ हे
इसीलियें तो खफा हे यह चाँद जुगनू से
की इसके हिस्से में आखिर यह रौशनी क्यूँ हे
यह एक रात में क्या हो गया हे बस्ती को
कोई बताये यहाँ इतनी खामुशी क्यूँ हे
किसी को इतनी भी फुर्सत नहीं के देख तो ले
यह लाश किसकी हे कल से यहीं पढ़ी क्यूँ हे
जला के खुद को जो देता हे रौशनी सब को
उसी चिराग की किस्मत मन तीरगी क्यूँ हे
हर एक राह यही पूंछती हे हम से सिराज
सफर की धुल मुकद्दर में आज भी क्यूँ हे ।
तो जनाब यह गजल जनाब अहमद सिराज फारुकी द्द्वादा कोटा जंक्शन में रहने वालों की हें इनके मोबाइल नम्बर ०९९२८५८५०५१ हे ।
अख्तर खाना अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
03 अगस्त 2010
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बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !