हमारे देश की संवेधानिक व्यवस्था के तहत देश में सरकार के निर्वाचन के लियें निर्वाचन विभाग का अलग से गठन किया गया हे जिसका काम देश में लोकतांत्रिक तरीके से गठित राजनितिक पार्टियों के आचरण को विहिक प्रावधानों के तहत होना पाकर ही चुनाव में इजाजत देने का नियम हे निर्वाचन विभाग ही ऐसी राजनितिक पार्टियों को पार्टियों का आतंरिक लोकतंत्र जीवित होने पर ही मान्यता देता हे अन्यथा मान्यता रद्द करने का प्रावधान हे ।
कहने को तो कानून बना हे लेकिन दोस्तों आप सभी जानते हें चाहे भाजपा हो चाहे कोंग्रेस चाहे बसपा हो चाहे कम्युनिस्ट या फिर जनता दल ऐ बी सी डी वगेरा हो सभी के आंतरिक लोकतंत्र यानी पार्टी की चुनाव प्रक्रिया पर पार्टी का बना संविधान हे जिसके तहत ब्लोक,जिला,प्रदेश और फिर राष्ट्रीय स्तर की कार्यकारिणी बनाने का प्रावधान हे और इसके लियें निर्वाचन अधिकारी नियुक्त कर सदस्यों से आवेदन मांग कर गुप्त मतदान से चुना कराने का प्रावधान हे लेकिन सभी राजनितिक दलों में केवल कागज़ी लोकतंत्र हे और हालत यह हे के सभी पार्टियां अपना अध्यक्ष निर्वाचन कानून पार्टी का संविधानो और लोकतंत्र ताक में रख कर राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा करती हें चाहे भाजपा के गडकरी जी हों,चाहे जनता दल के लालू या फिर ममता.मायावती हो या फिर कोंग्रेस की सोनिया हों सभी गेर कानूनी तरीके से जनता और देश के संविधान की आँखों में धुल झोंक कर अध्यक्ष बने हें यानी किसी भी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र नहीं कुछ लोगों का कोक्स हे जिसका कब्जा हे और वही कुलियों में गुड फोड़ कर मनचाहे लोगों को पदों पर बिठा देते हें राजनितिक दल तो अपना वर्चस्व स्थापित करने के लियें चाहे जो करें लेकिन लोक प्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों के तहत इस का परिक्षण करने की ज़िम्मेदारी चुनाव आयोग की हे और चनाव आयोग तो सरकार की नोकरी में होने जेसा काम कर रहा हे क्यूंकि अब चुनाव आयोग तो हे लेकिन चुनाव आयोग के अध्यक्ष टी ऍन शेषन नहीं हें , दोस्तों पार्टियों में तानाशाही हे इसीलियें देश के लोकतंत्र में भी तानाशाही और अफसर शाही हावी हो गयी हे जो घुन की तरह से इ दश को खोखला कर रहे हें खुदा मेरे इस देश को ऐसे दोहरे किरदार वालों से बचा ले जो दिखावटी तोर पर तो कानून के रक्षक बनने की बात करते हें लेकिन यही लग इस देश के हर कानून का मजाक उड़ाते हें । अगर आज चुनाव आयोग अपना काम करे तो कोंग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी,भाजपा के अध्यक्ष गडकरी,सपा के मुलायम,जद के लालू,बसपा की मायावती अध्यक्ष नहीं होते और देश की तस्वीर ही कुछ और होती लेकिन निर्वाचन आयोग की ढिलाई के चलते देश में लोकतंत्र की हत्या हो रही हे वरना निर्वाचन नियमों के चलते इन हालातों में सभी पार्टियों की राजनितिक मान्यता समाप्त होने का नियम हे जो नहीं किया जा रहा हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
17 अगस्त 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
congrats. But is this a win? the real win is to rule the heart of India.
जवाब देंहटाएं