सेवानिवृत रेलवे अधिकारी और मशहूर गजल कवि लेखक के के सिंग मयंक हाल ही में अपनी यात्रा पर कोटा आये थे कई वर्षों बाद उनसे मुलाक़ात हुई लेकिन अपने पन का वही पुराना एहसास वही साहित्यिक अंदाज़ ऐसा लगा मानो किसी पारिवारिक सदस्य के साथ बेठे हों। के के सिंह मयंक ने करीब २८ से भी अधिक गजल के दीवान या यूँ कहिये के पुस्तकें लिखी हें उनकी शायरी में एक ख़ास बात तो यह हे के वोह महबूब,माशुज़,जुल्फों,प्यार,और विरह से दूर रहे हें उनका मानना हे के वर्तमान हालातों में और भी गम हे जमाने में मोहब्बत के सिवा और इसीलियें आज के हालात और उन पर नसीहत पर ही उन्होंने बहुत कुछ लिखा हे ।
के के सिंह मयंक वेसे तो कोटा के लियें नये नहीं थे लेकिन फिर भी वोह जब यहा रहे तो कोटा के माहोल में अपनापन,प्यार का वातावरण बन गया उन्होंने रेलवे की नोकरी में व्यस्तताओं के बावजूद जो कुछ भी लिखा वोह देश के कोने कोने में जो हालात हें उनकी तर्जुमानी हे उनकी तस्वीर हे एक गजल में वोह वर्मान हाआतों में भटके नोजवानों को यूँ सिख देते हें ; यूँ तुम दंगों में अपना लहू बहा दोगे तो बताओ देश की रक्षा में जब जररत पढ़ेगी तुम्हारे लहू की तो कहां से लाओगे ; उनकी हर पंक्ति हर शेर में जिंदगी हे और ऐसे ज़िंदा दिल इंसान का ही दुसरा नाम के के सिंह मयंक हे । दोस्तों मयंक अपनी हर गजल ७ या ९ अशार में पूरी करते हें और उन्होंने कभी साहित्य के मामलों मन अल्फाजों की लफ्फाजी नहीं की उन्हने तो बस अल्फाजों को चुना हे , गजल की माला में पिरोया हे और गजल लिखना गजल कहना उनका शोक या व्यवसाय नहीं उनकी साधना हे उनकी पूजा हे और इसीलियें वोह जब भी लिखते हें राष्ट्र धर्म मानवता की ही बात कहते हें उनकी साधना की हद यह हे के उनका कोई शेर उर्दू गजल के मानकों की कसोटी से निचा नहीं उतरा हे वही बहर भी मीटर नाप टोल शब्दों का उतार चडाव उन्होंने नहीं छोड़ा हे , अब के के सिंह मयंक जब कोटा से गये हें तो कोटा के साहित्यकार उनसे नहीं मिल पाने का अफ़सोस जता रहे हें , मयंक कोटा से तो चले गये लेकिन अपनी यादें छोड़ गये । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
16 अगस्त 2010
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अच्छा संस्मरण !
जवाब देंहटाएंअपन तो बहुत पहले आपको शामिल कर चुके हैं dil me.
हमज़बान यानी समय के सच का साझीदार
पर ज़रूर पढ़ें:
काशी दिखाई दे कभी काबा दिखाई दे
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html
मयंक जी विषयक संस्मरण...पढ़्कर अच्छा लगा.
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