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13 अगस्त 2010

बेचारा कबूतर


एक कबूतर
जो निकला था
किसी के प्यार
का संदेश लेकर ,
आसमान में ऊँची
बेफिक्री की उड़ान थी उसकी ,
खूब ऊँचाई से जब वोह
जिंदगी की रंगिनिया देखता था
तब ही
एक बाज़ उस कबूतर पर झपटा
और बस
फिर कबूतर थोड़ा तडपा
और फिर हमेशां के लियें
खामोश हो गया
में सोचता रहा
कुदरत तेरा यह किया खेल हे
जो बुलंदियों पर हे
जिससे कभी किसी को नुकसान नहीं
आखिर उसे भी
केसे बेरहमी से खत्म किये जाने का
तेरा निजाम हे
और बस फिर तब से आज तक में
ऊँची उड़ान से डरता हूँ
हर वक्त हर लम्हा
किसी बाज़ के
झपटने की आहट से
सहम कर सिहर जाता हूँ
कहने को तो जी रहा हूँ
लेकिन हर पल
हर लम्हा मोत की आहट से
डर रहा हूँ ..........
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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