आपका-अख्तर खान

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18 जुलाई 2010

ना मसलेगा कोई

अख्तर मान ले ,
मेरा कहना
गुल में लिपटे
तो कांटे बन कर लिपटना
गुल का क्या हे
इसे तो मसल देते हें लोग
कांटे ही हें जो
गुल को तो बचाते हें
और काँटों को मसल नहीं सकते लोग
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह ………………क्या बात कही है।
    कल (19/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

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