अख्तर मान ले ,
मेरा कहना
गुल में लिपटे
तो कांटे बन कर लिपटना
गुल का क्या हे
इसे तो मसल देते हें लोग
कांटे ही हें जो
गुल को तो बचाते हें
और काँटों को मसल नहीं सकते लोग
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
18 जुलाई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
वाह ………………क्या बात कही है।
जवाब देंहटाएंकल (19/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
http://charchamanch.blogspot.com