आपका-अख्तर खान

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15 जुलाई 2010

ठहाके खत्म हुए

देखों अब हम
चल दिए
तुम्हारी महफ़िल से
सोचो जरा
हम से ठहाके थे
महफ़िल में तुम्हारी
अब कहां से
लाओगे आदमी
ठहाकों के लियें
अन्धेरा हे महफ़िल में तुम्हारे
चराग कहा से जलाओगे
मेरे जाने के बाद
रौशनी के लियें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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