ऐ धुप के डर से
घर में बेठने वाले
बाहर तो निकल
कदम कदम पर दरख्त हें
साया बहुत मिलेंगा तुझे
रास्ते में दरख्तों का
ऐ धुप के डर से
घर बेठने वाले
दो कदम तो
बाहर चल
रंगीन हसीन दुनिया हे
फूलों की खुशबु ठंडी हवा हे
धुप के डर से यूँ घर ना बेठ
बाहर निकल
खुदा की
नियामतों को
इन्तिज़ार हे तेरा
यह हताशा यह निराशा
भूल जा भाई
सांस हे तो आस हे
खुशियों को तेरा हे इन्तिज़ार
जरा बाहर तो निकल कर देख ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
15 जुलाई 2010
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बहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंअकेला जी इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार करें...
जवाब देंहटाएंनीरज