आपका-अख्तर खान

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15 जुलाई 2010

धुप के डर से

ऐ धुप के डर से
घर में बेठने वाले
बाहर तो निकल
कदम कदम पर दरख्त हें
साया बहुत मिलेंगा तुझे
रास्ते में दरख्तों का
ऐ धुप के डर से
घर बेठने वाले
दो कदम तो
बाहर चल
रंगीन हसीन दुनिया हे
फूलों की खुशबु ठंडी हवा हे
धुप के डर से यूँ घर ना बेठ
बाहर निकल
खुदा की
नियामतों को
इन्तिज़ार हे तेरा
यह हताशा यह निराशा
भूल जा भाई
सांस हे तो आस हे
खुशियों को तेरा हे इन्तिज़ार
जरा बाहर तो निकल कर देख ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

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