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10 अप्रैल 2010

यातना विरोधी संधि का कानून

१९७५ में यातना विरोधी संधि पर हस्ताक्षर करने और फिर अन्तराष्ट्रीय स्तर पर इसे भारत देश में लागू करने की शपथ लेने के बाद अब इस कानून का मस्वदा बनाया जा रहा हे यह क़ानून पुलिस हिरासत में रह रहे लोगों को यातना से बचाने और विधि विरुद्ध यातना देने वालों को दंडित करने के लियें बनाया जा रहा हे आज भारतीय पुलिस की आम जनता से व्यवहार और झुंटे मुकदमे बना कर उन्हें प्रताड़ित करने की आम शिकायतें हें । अभी जयपुर का फर्जी मुठभेड़ दारा सिंह प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने सी बी आई से जांच कराने के निर्देश देकर पुलिस की विश्वसनीयता की पोल खोल दी हे । देश में आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गये लोगों के अनुसन्धान कोछोड़ दें तो एनी मामलों में आधी से ज्यादा जांचें और बनाए गये मामले संदिग्ध होते हें इसको रोकने के लियें एक ख़ास उपाय हे यदि पुलिस द्वारा किसी को आपराधिक मुकदमें में खुद गवाह बनकर पकड़ा जाता हे तो फिर वोह जो भी लिख कर लाते हें उसकी परख और अनुसन्धान अधिकारी तथा वरिष्ट अधिकारियों के सच को परखने के लियें इसे सभी सम्बन्धित पुलिस के गवाहों पुलिस अनुसन्धान अधिकारी और पुलिस के वरिष्ट अधिकारियों के नारको टेस्ट करवा कर उनके द्वारा की गयी सच्चाई को परखना चाहिए अगर नारको टेस्ट में वोह स्वयम के द्वारा किये गये अनुसन्धान और घटना की सत्यता की पुष्टि करते हें तो बस फिर अभियुक्त को जमानत का लाभ नहीं दिया जाए और अगर पुलस के गवाह और अनुसन्धान अधिकारी की झुंट पकड़ी जाती हे तो इसे दोषी पुलिस कर्मियों को नोकरी से हटा कर दंडित किया जाना चाहिए ताकि फिर किसी भी भारतीय को झूनते मुकदमे में फंसाने की हिमाकत कोई पुलिस कर्मी नहीं कर सके। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. बिलकुल सही बात कही है आपने | आपके ही शहर कोटा के एक वकील साहब है | श्री दिनेश्वर राय द्विवेदी जी , वे भी बहुत अच्छा लिखते है | तीसरा खम्भा नामक बलोग है उनका |

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