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04 नवंबर 2025

( प्रसंग : युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच न्यास, दिल्ली का 12 वाँ अखिल भारतीय साहित्य समारोह )

 

अभिव्यक्ति से संवाद
पुस्तक मेले में भीड़ तो जुटती है, लौटते समय थैले में किताब के कैटेलॉग अधिक होते हैं....
( प्रसंग : युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच न्यास, दिल्ली का 12 वाँ अखिल भारतीय साहित्य समारोह )
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साहित्य को पाठकों का टोटा आजादी के बाद भी था और आज भी है। साहित्यकार हैं, साहित्य भी है पर पाठक कहां हैं ? चिंता जाहिर हैं, जन - जन तक साहित्य कैसे पहुंचे ? साहित्य और पाठक के इस अंतर्संबंध को शिद्दत से रेखांकित किया वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने। अवसर था 2 नवंबर 25 को दिल्ली के पब्लिक पुस्तकालय में युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच न्यास के 12 वें अखिल भारतीय साहित्य समारोह का आयोजन। मुझे भी बतौर पुरस्कार प्राप्तकर्ता सम्मिलित होने का मौका मिला।
समारोह में विभिन्न साहित्यिक विषयों पर परिचर्चा में विशिष्ठ अतिथि पत्रकार अरविंद कुमार सिंह के विचार सुने। उन्होंने "समाचार पत्रों से विलुप्त होता साहित्य" विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। पत्रकार होने के नाते उनकी साहित्य, समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले साहित्य और पाठक को लेकर अनुभवजनित विचार मेरे मन को भी छू गए।
साहित्य को पाठक नहीं, की चिंता को उनके साथ - साथ मैंने भी महसूस किया और साहित्यिक पत्रकारिता के अंतर्गत पिछले दो वर्ष से कोटा में नई बढ़ती पौध बच्चों में साहित्य की समझ पैदा कर उनमें साहित्य अनुराग जीवित करने का अभियान चला रखा है। उद्देश्य यही है साहित्यकार भी बने और पाठक भी। इसमें कोटा के साथ हाड़ोती अंचल के कुछ साहित्यकार आगे आए हैं और मेरे साथ कंधे से कंधा मिला कर इस मुहिम में सक्रिय हैं।
जब मैं उनके विचार सुन रहा था मुझे वे अपने ही मन की बात नजर आ रही थी। मेरे मन की बात कह रहे थे अरविंद भाई। वे कह रहे थे आज़ादी के समय 1949 में जब करीब
आठ हज़ार पत्र और पत्रिकाएं थी तब उनमें साहित्य का प्रकाशन भरपूर होता था। उस समय की पत्रकारिता की खूबी थी कि उस समय के समाचार पत्रों ने कई बड़े लेखकों को जन्म दिया । ज्यादातर साहित्यकार ही समाचार पत्र-पत्रिकाओं के संपादक हुआ करते थे । उन्होंने बताया अज्ञेय से लेकर रघुवीर सहाय तक जैसे अनेक मूर्धन्य साहित्यकारों ने अखबारों में साहित्य का भरपूर प्रकाशन किया। हर समाचार पत्र में एक साहित्य संपादक हुआ करता था, लंबे समय तक यह परम्परा चलती रही और आज साहित्य संपादक की संस्था डगमगा गई है तथा कुछ ही समाचार पत्रों में दिखाई देती हैं। समाचार पत्र से साहित्य का बहुत कम प्रकाशन होना साहित्य संपादक की कड़ी का विलुप्त हो जाना भी है।
उनके इस तथ्य को मैने भी महसूस किया और देखा 70 और 80 के दशकों में एक पूरा पृष्ठ कभी-कभी दो पृष्ठ साहित्य के नाम होते थे । लेखकों को भरपूर स्थान मिलता था। अच्छे समाचार पत्र कुछ प्रोत्साहन राशि प्रदान कर लेखक के इस अहसास को बल प्रदान करते थे कि मेरी रचना अनुख अखबार में छपी है। आज साहित्य का स्थान समाचार पत्रों में या तो विलुप्त हो गया या फिर बहुत सीमित रह गया है। इस सीमित स्थान में भी बड़ी जगह खुद उनके संपादक अथवा विशिष्ठ साहित्यकार के लिए रहती है, साहित्यिक रचनाएं गिनती की होती हैं। धर्म, दर्शन ,स्वास्थ्य,फिल्म आदि पर एक पूरा पृष्ठ रहता है परन्तु साहित्य पृष्ठ हाशिए पर आ गया है।
अनुभव बताता है स्वयं साहित्यकारों का भी पाठक के रूप में साहित्य से संबंध निरंतर कम हो रहा है। पठन वृति कम हो रही है, लिखने, छपने, किसी समारोह में अतिथि बनने, सम्मानित होने पर ही जोर दिखाई देता है। जिस कृति को वे स्वयं लोकार्पित कर साथ ले आते हैं, अपवाद को छोड़ कर उसे भी देखते तक नहीं और वह अलमारी की शोभा बन जाती है।
इसी भाव को रेखांकित करते हुए अरविंद ने कहा दिल्ली के पुस्तक मेले में लोग की भीड़ तो बहुत जुटती है परन्तु लौटते समय उनके थैले में किताब के कैटेलॉग अधिक होते हैं । साहित्य के पाठक कम होना चिंता का विषय है और समस्या है की जन-जन तक साहित्य कैसे पहुंचे ?
बच्चों को तो हम यह कह कर दोष मंड देते हैं कि वे हर समय मोबाइल से जुड़े रहते हैं, कविता , कहानी पढ़ते भी हैं तो इंटरनेट से, अब ऐसे साहित्यकारों को क्या कहें कि किस वजह से ये किताबें नहीं पढ़ते हैं, फिर आम जन से उम्मीद क्यों ? बात रुचि की भी है ऐसे - ऐसे लोग भी हैं जो साहित्यकार नहीं हो कर भी पुस्तकें पढ़ने का शौक रखते हैं। दिल्ली जाने से कुछ दिन की साहित्यकार डॉ. वैदेही गौतम जी के निवास पर जाना हुआ, वहां चर्चा के दौरान ज्ञात हुआ कि उनके पतिदेव संदीप जी जो एक व्यवसायिक हैं और पुस्तकें पढ़ने की जबरदस्त रुचि रखते हैं। कई क्षेत्रों में उनका ज्ञान उस क्षेत्र के ही व्यक्ति से कहीं ज्यादा और पुख्ता है।
यहां अब इस विमर्श को विराम देते हैं । समाचार पत्रों में साहित्य की कमजोर स्थिति और पाठकों की कमी के रहते हुए भी उम्मीद का दिया जलता रहेगा, नए विकल्प आयेंगे, राज्य सरकारें साहित्यकारों को और अधिक प्रोत्साहन देगी। सार्थक परिचर्चा के लिए मंच अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर उपाध्याय जी को साधुवाद।
- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार, कोटा

(ऐ इमानदारों) जिस तरह तुम में से एक दूसरे को (नाम ले कर) बुलाया करते हैं उस तरह आपस में रसूल का बुलाना न समझो ख़ुदा उन लोगों को खू़ब जानता है जो तुम में से आँख बचा के (पैग़म्बर के पास से) खिसक जाते हैं- तो जो लोग उसके हुक्म की मुख़ालफत करते हैं उनको इस बात से डरते रहना चाहिए कि (मुबादा) उन पर कोई मुसीबत आ पडे़ या उन पर कोई दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल हो

 इस बात में न तो अँधे आदमी के लिए मज़ाएक़ा है और न लँगड़ें आदमी पर कुछ इल्ज़ाम है- और न बीमार पर कोई गुनाह है और न ख़ुद तुम लोगो पर कि अपने घरों से खाना खाओ या अपने बाप दादा नाना बग़ैरह के घरों से या अपनी माँ दादी नानी वगै़रह के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चचाओं के घरों से या अपनी फूफि़यों के घरों से या अपने मामूओं के घरों से या अपनी खा़लाओं के घरों से या उस घर से जिसकी कुन्जियाँ तुम्हारे हाथ में है या अपने दोस्तों (के घरों) से इस में भी तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि सब के सब मिलकर खाओ या अलग अलग फिर जब तुम घर वालों में जाने लगो (और वहाँ किसी का न पाओ) तो ख़ुद अपने ही ऊपर सलाम कर लिया करो जो ख़ुदा की तरफ से एक मुबारक पाक व पाकीज़ा तोहफा है- ख़ुदा यूँ (अपने) एहकाम तुमसे साफ साफ बयान करता है ताकि तुम समझो (61)
सच्चे इमानदार तो सिर्फ वह लोग हैं जो ख़ुदा और उसके रसूल पर इमान लाए और जब किसी ऐसे काम के लिए जिसमें लोगों के जमा होने की ज़रुरत है- रसूल के पास होते हैं जब तक उससे इजाज़त न ले ली न गए (ऐ रसूल) जो लोग तुम से (हर बात में) इजाज़त ले लेते हैं वे ही लोग (दिल से) ख़ुदा और उसके रसूल पर इमान लाए हैं तो जब ये लोग अपने किसी काम के लिए तुम से इजाज़त माँगें तो तुम उनमें से जिसको (मुनासिब ख़्याल करके) चाहो इजाज़त दे दिया करो और खु़दा उसे उसकी बखशिश की दुआ भी करो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (62)
(ऐ इमानदारों) जिस तरह तुम में से एक दूसरे को (नाम ले कर) बुलाया करते हैं उस तरह आपस में रसूल का बुलाना न समझो ख़ुदा उन लोगों को खू़ब जानता है जो तुम में से आँख बचा के (पैग़म्बर के पास से) खिसक जाते हैं- तो जो लोग उसके हुक्म की मुख़ालफत करते हैं उनको इस बात से डरते रहना चाहिए कि (मुबादा) उन पर कोई मुसीबत आ पडे़ या उन पर कोई दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल हो (63)
ख़बरदार जो कुछ सारे आसमान व ज़मीन में है (सब) यक़ीनन ख़ुदा ही का है जिस हालत पर तुम हो ख़ुदा ख़ूब जानता है और जिस दिन उसके पास ये लोग लौटा कर लाएँ जाएँगें तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया है बता देगा और ख़ुदा तो हर चीज़ से खू़ब वाकिफ है (64)

सूरए नूर ख़त्म

03 नवंबर 2025

नगर निगम कोटा उत्तर के उप महापौर फरीदउद्दीन सोनू कुरैशी का उप महापौर कार्यकाल स्वर्णिम काल रहा

 

नगर निगम कोटा उत्तर के उप महापौर फरीदउद्दीन सोनू कुरैशी का उप महापौर कार्यकाल स्वर्णिम काल रहा , निर्विवाद , बेदाग छवि , क़ौमी एकता को समर्पित , आम जन समस्याओं का समाधान , साफ सफाई पर फोकस , सामुदायिक निर्माण , रचनात्मक कार्यों वाला रहा , सोनू कुरैशी के कार्यकाल समापन के अवसर पर कोटा शहर क़ाज़ी जुबेर अहमद साहब सहित कोटा शहर के गणमान्य नागरिकों ने उनके इस कामयाब कार्यकाल के लिए बधाइयां दीं, , उनका सम्मान किया ,, स्वायत्त शासन मंत्री रहे, शान्ति कुमार धारीवाल का कांग्रेस के प्रति समर्पित यह युवा सिपाही कांग्रेस के हक़ संघर्ष , घंटाघर सहित सभी क्षेत्रों की समस्याओं के समाधान के लिए , सजग , सतर्क , जंगजू सिपाही थे , घंटाघर वार्ड से सोनू कुरैशी को , कांग्रेस ने वार्ड पार्षद का टिकिट दिया , जो विकट परिस्थितियों में भी रिकॉर्ड मतो से विजयी हुए , और शांति कुमार धारीवाल ने सोनू कुरैशी का युवाओ के प्रति समर्पण , उनकी प्रशासनिक कार्यशैली , वफादारी को देखते हुए , उनका नाम उप महापौर कोटा उत्तर नगर निगम के लिए प्रस्तावित किया , जो वार्ड पार्षदों ने बहुमत से उन्हें वोट देकर कोटा उत्तर उप महापौर पद पर निर्वाचित किया ,, सोनू कुरैशी के कार्यभार ग्रहण के बाद , कोटा सहित पुरे देश में कोरोना की काली छाया थी , लेकिन सोनू कुरैशी ने , इस खतरनाक कार्यकाल के वक़्त ,, लोगों के लिए उनके खाने , पीने , इलाज , संक्रमण के दौरान अस्पताल में आवश्यक दवाये , जांचों , इंजक्शन के इंतिज़ाम करवाए , नियमित रूप से इनके क्षेत्र सहित शहर के अलग अलग इलाक़ों में , खाने पीने की सामग्री कैसे पहुंचे लोगों में संक्रमण से बचने के लिए सावधानी संबंधित जानकारियां कैसे पहुंचे , इन सभी मामलों को लेकर सोनू कुरैशी और उनकी टीम ने घंटाघर सहित अलग अलग बस्तियों में जान की परवाह किये बगैर मदद पहुंचाई , सोनू कुरैशी आम लोगों के दुःख दर्द के साथी के रूप में काम करते रहे , इसी दौरान , राजस्थान हज कमेटी में स्वायत्त शासन प्रतिनिधि के रूप में उन्हें प्रदेश स्तरीय राज्य हज कमेटी में सदस्य नियुक्त किया गया ,, सोनू कुरैशी ने इस ज़िम्मेदारी को भी कोटा में , हाजियों के प्रशिक्षण शिविर , उनके आवेदन से लेकर टीकाकरण , प्रंबधन , फलाइट स्वागत और विदाई कार्यक्रमों को बखूबी निभाया ,, सोनू कुरैशी उप महापौर तो कोटा नगर निगम उत्तर के थे , लेकिन इनकी अपनी ज़िम्मेदारी अपने वार्ड में विकास कार्यों , स्वरोज़गार योजनाओं को लेकर भी थी , इन्होने टूटी फूटी सड़कों का मरम्मत कार्य , नई सड़कों का निर्माण , नाली ,पानी की निकासी , घटाघर क्षेत्र के नलों में पानी कम प्रेशर से आने की समस्याओं का समाधान किया , प्रेशर बढ़वाया , और इस क्षेत्र में आने वाले हिन्दू ,, मुस्लिम , जेन समाज संबंधित धार्मिक स्थलों के आसपास आवागम की व्यवस्थाएं , साफ़ सफाई की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया , सोनू कुरैशी ने घंटाघर इक़बाल चौक में कोटा उत्तर उप महापौर कार्यालय खोला ,जहाँ हर समस्या की सुनवाई और समाधान के प्रयास होते थे , इनके कार्यालय में सभी समाज के लोग शिकायतें लेकर आते और समाधान पाकर खुश होकर सोनू कुरैशी ज़िंदाबाद कहते हुए दुआएं देते हुए चले जाते , सभी धर्मों के कार्यकम में सोनू कुरैशी शामिल होकर , हर समाज , हर वर्ग से जुड़े लोगों को मुबारकबाद देते , उनके धार्मिक आयोजन में नगर निगम से दी जाने वाली साफ़ सफाई सहित अन्य सुविधाएं तुरंत उपलब्ध कराते , और धार्मिक स्थलों के परिसरों सहित समुदायिक भवन का निर्माण इनकी बढ़ी उपलब्धि रही , ,सोनू कुरैशी अकेले ऐसे उप महापौर रहे जिन्होंने , इनके नगर निगम उप महापौर कार्यालय में , पर्ची देकर मिलने की प्रथा को खत्म कर दिया , इनके चेंबर में , कोई भी व्यक्ति , किसी भी काम को लेकर बिना पर्ची के बेधड़क , जाता अपना काम बताता , तुरंत उसका समाधान पाता , सोनू कुरैशी कार्यालय में निर्धारित पूर्व सुचना के अनुरूप हमेशा उपलब्ध रहते , शिकायतकर्ताओं की शिकायत पर तुरंत संज्ञान लेते , संबंधित अधिकारियों , चाहे वोह नगर निगम संबंधित शिकायत हो , चाहे पुलिस , चाहे प्रशासनिक अधिकारियों संबंधित शिकायत हो , उसका तुरंत समाधान के प्रयास को लेकर वोह संबंधित अधिकारी से बात करते , कोई टालमटोल नहीं , काम कैसे हो , समस्या का समाधान कैसे हो , अमन , सुकून , शांति , क़ौमी एकता का माहौल कैसे क़ायम रहे इसके लिए वोह हमेशा चिंतित रहते ,, एक तरफ खुद के वार्ड के विकास कार्यों की ज़िम्मेदारी , दूसरी तरफ हज प्रबंधन की ज़िम्मेदारी , उप महापौर कार्यप्रबंधन की ज़िम्मेमदारी , कांग्रेस संगठन के साथ शांति कुमार धारीवाल साहब के नेतृत्व के निर्देशों की पालना की ज़िम्मेदारी , सोनू कुरैशी के लिए बढ़ी चुनौती था , लेकिन सोनू कुरैशी ने , हँसते , मुस्कुराते , बिना किसी विवाद , बिना किसी आरोप प्रत्यारोप के इनके कर्तव्यों का निर्वहन बखूबी निभाया है , यही वजह रही है , के सोनू कुरैशी ने हर दिल अज़ीज़ , समर्पण भाव , विनम्रता के साथ , शिकवे , शिकायतों की सुनवाई , उनके समाधान , कुशल प्रबंधन का एक रचनात्मक इतिहास बना दिया , और उनके कार्यकाल समाप्ति के बाद , उनके कार्यकाल को अब भविष्य में तुलनात्मक व्यवस्था के साथ याद किया जाता रहेगा ,, आज सोनू कुरैशी के ऐसे स्वर्णिम समर्पित कार्यकाल के लिए उन्हें ,, कोटा शहर क़ाज़ी जुबेर अहमद के नेतृत्व में शहर के बुद्धिजीवी समाज के प्रतिनिधियों ने उन्हें सम्मानित किया , उनका स्वागत किया , उन्हें बधाइयां दीं , मुबारकबाद दी , अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339

आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय सचिव बनने पर

 आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय सचिव बनने पर मौजूदा ज़िला वक़्फ़ कमेटी के नायब सदर "साजिद जावेद" का ज़िला वक़्फ़ कमेटी दफ्तर में कोटा शहरक़ाज़ी जनाब ज़ुबेर अहमद साहब, वक़्फ़ कमेटी चेयरमैन जनाब सरफराज़ अंसारी द्वारा माला पहनाकर इस्तक़बाल किया गया इस मोके पर शहर के मशहूर शख्ससियत अख्तर खान अकेला एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट के वकील ज़हीर अहमद एडवोकेट, अंसार इन्दोरी एडवोकेट, जमात ऐ इस्लामी के अमीर गुलशेर अहमद साहब, इरफ़ान गुड्डू भाई, वक़्फ़ कर्मचारी शहज़ाद खान, ज़ैफ खान, सुहेल अली आदि ने माला पहनाकर इस्तक़बाल किया व खुशि का इज़हार किया, इस मोके पर समस्त वक़्फ़ स्टाफ व अन्य गणमान्य शख्स हाजिर रहें, साजिद जावेद ने इस्तक़बाल के मोके पर सभी कोटा की मशहूर और मारूफ शख्ससियत का शुक्रिया अदा किया और साथ में राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने और सम्मान देने के AIPMS के संयोजक जनाब नाज़िर अंसारी व राष्ट्रीय अध्यक्ष जनाब डॉ शाकिर मंसूरी का तहेदिल से शुक्रिया किया, साथ में विश्वसनीय सहयोगी राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष ज़ैफ मंसूरी का भी शुक्रिया अदा किया

इमानदारों का क़ौल तो बस ये है कि जब उनको ख़ुदा और उसके रसूल के पास बुलाया जाता है ताकि उनके बाहमी झगड़ों का फैसला करो तो कहते हैं कि हमने (हुक्म) सुना और (दिल से) मान लिया और यही लोग (आखि़रत में) कामयाब होने वाले हैं

 इमानदारों का क़ौल तो बस ये है कि जब उनको ख़ुदा और उसके रसूल के पास बुलाया जाता है ताकि उनके बाहमी झगड़ों का फैसला करो तो कहते हैं कि हमने (हुक्म) सुना और (दिल से) मान लिया और यही लोग (आखि़रत में) कामयाब होने वाले हैं (51)
और जो शख़्स ख़ुदा और उसके रसूल का हुक्म माने और ख़ुदा से डरे और उस (की नाफरमानी) से बचता रहेगा तो ऐसे ही लोग अपनी मुराद को पहुँचेगें (52)
और (ऐ रसूल) उन (मुनाफे़क़ीन) ने तुम्हारी इताअत की ख़ुदा की सख़्त से सख़्त क़समें खाई कि अगर तुम उन्हें हुक्म दो तो बिला उज़्र (घर बार छोड़कर) निकल खडे़ हों- तुम कह दो कि क़समें न खाओ दस्तूर के मुवाफिक़ इताअत (इससे बेहतर) और बेशक तुम जो कुछ करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है (53)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा की इताअत करो और रसूल की इताअत करो इस पर भी अगर तुम सरताबी करोगे तो बस रसूल पर इतना ही (तबलीग़) वाजिब है जिसके वह जि़म्मेदार किए गए हैं और जिसके जि़म्मेदार तुम बनाए गए हो तुम पर वाजिब है और अगर तुम उसकी इताअत करोगे तो हिदायत पाओगे और रसूल पर तो सिर्फ साफ तौर पर (एहकाम का) पहुँचाना फर्ज़ है (54)
(ऐ इमानदारों) तुम में से जिन लोगों ने इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उन से ख़ुदा ने वायदा किया कि उन को (एक न एक) दिन रुए ज़मीन पर ज़रुर (अपना) नाएब मुक़र्रर करेगा जिस तरह उन लोगों को नाएब बनाया जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं और जिस दीन को उसने उनके लिए पसन्द फरमाया है (इस्लाम) उस पर उन्हें ज़रुर ज़रुर पूरी क़ुदरत देगा और उनके ख़ाएफ़ होने के बाद (उनकी हर आस को) अमन से ज़रुर बदल देगा कि वह (इत्मेनान से) मेरी ही इबादत करेंगे और किसी को हमारा शरीक न बनाएँगे और जो शख़्स इसके बाद भी नाशुक्री करे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं (55)
और (ऐ इमानदारों) नमाज़ पाबन्दी से पढ़ा करो और ज़कात दिया करो और (दिल से) रसूल की इताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाए (56)
और (ऐ रसूल) तुम ये ख़्याल न करो कि कुफ्फार (इधर उधर) ज़मीन मे (फैल कर हमें) आजिज़ कर देगें (ये ख़ुद आजिज़ हो जाएगें) और उनका ठिकाना तो जहन्नुम है और क्या बुरा ठिकाना है (57)
ऐ इमानदारों तुम्हारी लौन्डी ग़ुलाम और वह लड़के जो अभी तक बुलूग़ की हद तक नहीं पहुँचे हैं उनको भी चाहिए कि (दिन रात में) तीन मरतबा (तुम्हारे पास आने की) तुमसे इजाज़त ले लिया करें तब आएँ (एक) नमाज़ सुबह से पहले और (दूसरे) जब तुम (गर्मी से) दोपहर को (सोने के लिए मामूलन) कपड़े उतार दिया करते हो (तीसरी) नमाजे़ इशा के बाद (ये) तीन (वक़्त) तुम्हारे परदे के हैं इन अवक़ात के अलावा (बे अज़न आने मे) न तुम पर कोई इल्ज़ाम है-न उन पर (क्योंकि) उन अवक़ात के अलावा (ब ज़रुरत या बे ज़रुरत) लोग एक दूसरे के पास चक्कर लगाया करते हैं- यँ ख़ुदा (अपने) एहकाम तुम से साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाकिफ़कार हकीम है (58)
और (ऐ इमानदारों) जब तुम्हारे लड़के हदे बुलूग को पहुँचें तो जिस तरह उन के कब्ल (बड़ी उम्र) वाले (घर में आने की) इजाज़त ले लिया करते थे उसी तरह ये लोग भी इजाज़त ले लिया करें-यूँ ख़ुदा अपने एहकाम साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाकिफकार हकीम है (59)
और बूढ़ी बूढ़ी औरतें जो (बुढ़ापे की वजह से) निकाह की ख़्वाहिश नही रखती वह अगर अपने कपड़े (दुपट्टे वगै़राह) उतारकर (सर नंगा) कर डालें तो उसमें उन पर कुछ गुनाह नही है- बशर्ते कि उनको अपना बनाव सिंगार दिखाना मंज़ूर न हो और (इस से भी) बचें तो उनके लिए और बेहतर है और ख़ुदा तो (सबकी सब कुछ) सुनता और जानता है (60)

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