आपका-अख्तर खान "अकेला"
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
11 दिसंबर 2025
अल्पसंख्यक विभाग प्रदेश कोंग्रेस के जिलाअध्यक्षों , लो बन गए ना अब तो, चलो शुरू हो जाओ,
कोटा । शहर व देहात जिला कांग्रेस कमेटी का पदभार ग्रहण समारोह गुरुवार को गुमानपुरा स्थित कांग्रेस कार्यालय में आयोजित किया गया
राजकीय विद्यालयों के 700 विद्यार्थियों से घर-घर पहुँचा नेत्रदान अंगदान का संदेश
राजकीय विद्यालयों के 700 विद्यार्थियों से घर-घर पहुँचा नेत्रदान अंगदान का संदेश
2. सहज,सरल भाषा में,बच्चों ने समझ लिया, नेत्रदान-अंगदान है महान
शाइन
इंडिया फाउंडेशन व ईबीएसआर-बीबीजे चेप्टर के तत्वाधान में बारां जिले के
पलायथा गांव के राज० उच्च मा० विद्यालय,राज० महात्मा गांधी विद्यालय एवं
राज० प्रवेशिका संस्कृत विद्यालय में कक्षा 6 से 12 तक के कुल 700 से अधिक
विद्यार्थियों और उपस्थित शिक्षकों को नेत्रदान अंगदान के विषय पर संस्था
संस्थापक डॉ कुलवंत गौड़ और डॉ संगीता गौड़ ने बहुत उपयोगी जानकारी दी।
कार्यशालाओं
का आयोजन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पलायथा के ही, नेत्रदान संकल्पित
शिक्षक दिगदर्शन सिंह चौहान द्वारा किया गया था ।
डा. कुलवंत गौड़
ने छात्र/छात्राओं समेत विद्यालय स्टाफ को नेत्रदान और अंगदान के महान
कृत्य को दैनिक जीवन के सहज उदाहरणों से जोड़कर स्पष्ट किया। उन्होंने
साझा किया कि,मरणोपरांत देह जो मिट्टी समान हो जाती है,उसे मानवता के
निमित्त कल्याण में लगाने का पुनीत कार्य होता है - नेत्रदान और अंगदान।
किंतु कुछ पारंपरिक भ्रांतियों और भावनात्मक संबंधों के चलते हम इस
कल्याणकारी कदम को उठाने में हिचकिचाते हैं।
संस्था सचिव डॉ संगीता
ने बताया कि,नेत्रदान मृत्यु के बाद 6 से 8 घंटे के भीतर,10 मिनट में पूरी
होने वाली रक्त विहीन प्रक्रिया है,इस प्रक्रिया में आँख के ठीक सामने
दिखाई देने वाला पारदर्शी हिस्सा जिसे पुतली या कॉर्निया कहा जाता है, उसे
ही मृतक की आँखों से लिया जाता है,लोगों को ऐसी भ्रांति है कि,नेत्रदान में
पूरी आँख ली जाती है जो कि गलत है, कॉर्निया लेने से किसी भी तरह की
विकृति चेहरे पर नहीं आती है । अंत में सवाल जवाब के माध्यम से बच्चों को
शाइन मेडल से पुरस्कृत किया गया ।
शिक्षक दिगदर्शन ने भी
विद्यार्थियों को संबोधित करते कहा कि,देश को अच्छे नागरिक देने के लिये
उत्तम शिक्षा के साथ साथ ,समय समय पर इस तरह के सामाजिक कार्यों की
कार्यशाला से बच्चों में न सिर्फ समाज,देश के प्रति दायित्व बढ़ता है,बल्कि
उनमें नई ऊर्जा व आत्मविश्वास का संचार करता है ।
कार्यशाला के अंत
में प्रश्नोत्तरी के माध्यम से बच्चों को नेत्रदान अंगदान के विषय पर दीजिए
जानकारी के बारे में सवाल किए गये और सही जवाब देने वालों को,शाइन मेडल से
पुरस्कृत किया गया ।
नेत्रदान अंगदान की जागरूकता कार्यशाला में,
प्रधानाचार्य श्रीमती संध्या शर्मा,श्रीमती वंदना राठौर श्रीमती पुष्पा
उदेशिया,के साथ गिरीश गोचर,सत्येंद्र मीना,बृजमोहन वर्मा और मनीष का सहयोग
रहा ।
तो (ऐ रसूल) तुम देखो उनकी तदबीर का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ कि हमने उनको और सारी क़ौम को हलाक कर डाला
तो (ऐ रसूल) तुम देखो उनकी तदबीर का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ कि हमने उनको और सारी क़ौम को हलाक कर डाला (51)
ये बस उनके घर हैं कि उनकी नाफ़रमानियों की वज़ह से ख़ाली वीरान पड़े हैं
इसमे शक नही कि उस वाकि़ये में वाकि़फ कार लोगों के लिए बड़ी इबरत है (52)
और हमने उन लोगों को जो इमान लाए थे और परहेज़गार थे बचा लिया(53)
और (ऐ रसूल) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम देखभाल कर (समझ बूझ कर) ऐसी बेहयाई करते हो (54)
क्या तुम औरतों को छोड़कर शहवत से मर्दों के आते हो (ये तुम अच्छा नहीं
करते) बल्कि तुम लोग बड़ी जाहिल क़ौम हो तो लूत की क़ौम का इसके सिवा कुछ
जवाब न था (55)
कि वह लोग बोल उठे कि लूत के खानदान को अपनी बस्ती (सदूम) से निकाल बाहर करो ये लोग बड़े पाक साफ़ बनना चाहते हैं (56)
ग़रज हमने लूत को और उनके ख़ानदान को बचा लिया मगर उनकी बीवी कि हमने उसकी तक़दीर में पीछे रह जाने वालों में लिख दिया था (57)
और (फिर तो) हमने उन लोगों पर (पत्थर का) मेंह बरसाया तो जो लोग डराए जा चुके थे उन पर क्या बुरा मेंह बरसा (58)
(ऐ रसूल) तुम कह दो (उनके हलाक़ होने पर) खु़दा का शुक्र और उसके
बरगुज़ीदा बन्दों पर सलाम भला ख़ुदा बेहतर है या वह चीज़ जिसे ये लोग शरीके
ख़ुदा कहते हैं (59)
भला वह कौन है जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया और तुम्हारे वास्ते
आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने पानी से दिल चस्प (ख़ुशनुमा) बाग़ उठाए
तुम्हारे तो ये बस की बात न थी कि तुम उनके दरख़्तों को उगा सकते तो क्या
ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) बल्कि ये लोग खुद अपने जी
से गढ़ के बुतो को उसके बराबर बनाते हैं (60)
10 दिसंबर 2025
(उसके बाद) सुलेमान ने कहा कि उसके तख़्त में (उसकी अक़्ल के इम्तिहान के लिए) तग़य्युर तबददुल कर दो ताकि हम देखें कि फिर भी वह समझ रखती है या उन लोगों में है जो कुछ समझ नहीं रखते
(उसके बाद) सुलेमान ने कहा कि उसके तख़्त में (उसकी अक़्ल के इम्तिहान के
लिए) तग़य्युर तबददुल कर दो ताकि हम देखें कि फिर भी वह समझ रखती है या उन
लोगों में है जो कुछ समझ नहीं रखते (41)
(चुनान्चे ऐसा ही किया गया) फिर जब बिलक़ीस (सुलेमान के पास) आयी तो पूछा
गया कि तुम्हारा तख़्त भी ऐसा ही है वह बोली गोया ये वही है (फिर कहने
लगी) हमको तो उससे पहले ही (आपकी नुबूवत) मालूम हो गयी थी और हम तो आपके
फ़रमाबरदार थे ही (42)
और ख़ुदा के सिवा जिसे वह पूजती थी सुलेमान ने उससे उसे रोक दिया क्योंकि वह काफिर क़ौम की थी (और आफ़ताब को पूजती थी) (43)
फिर उससे कहा गया कि आप अब महल मे चलिए तो जब उसने महल (में शीशे के
फ़र्श) को देखा तो उसको गहरा पानी समझी (और गुज़रने के लिए इस तरह अपने
पाएचे उठा लिए कि) अपनी दोनों पिन्डलियाँ खोल दी सुलेमान ने कहा (तुम डरो
नहीं) ये (पानी नहीं है) महल है जो शीशे से मढ़ा हुआ है (उस वक़्त तम्बीह
हुयी और) अर्ज़ की परवरदिगार मैने (आफ़ताब को पूजा कर) यक़ीनन अपने ऊपर
ज़ुल्म किया (44)
और अब मैं सुलेमान के साथ सारे जहाँ के पालने वाले खु़दा पर ईमान लाती
हूँ और हम ही ने क़ौम समूद के पास उनके भाई सालेह को पैग़म्बर बनाकर भेजा
कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो तो वह सालेह के आते ही (मोमिन व काफ़िर) दो
फरीक़ बनकर बाहम झगड़ने लगे (45)
सालेह ने कहा ऐ मेरी क़ौम (आखि़र) तुम लोग भलाई से पहल बुराई के वास्ते
जल्दी क्यों कर रहे हो तुम लोग ख़ुदा की बारगाह में तौबा व अस्तग़फार क्यों
नही करते ताकि तुम पर रहम किया जाए (46)
वह लोग बोले हमने तो तुम से और तुम्हारे साथियों से बुरा शगुन पाया सालेह
ने कहा तुम्हारी बदकिस्मती ख़ुदा के पास है (ये सब कुछ नहीं) बल्कि तुम
लोगों की आज़माइश की जा रही है (47)
और शहर में नौ आदमी थे जो मुल्क के बानीये फ़साद थे और इसलाह की फिक्र न
करते थे-उन लोगों ने (आपस में) कहा कि बाहम ख़ुदा की क़सम खाते जाओ (48)
कि हम लोग सालेह और उसके लड़के बालो पर सब खून करे उसके बाद उसके वाली
वारिस से कह देगें कि हम लोग उनके घर वालों को हलाक़ होते वक़्त मौजूद ही न
थे और हम लोग तो यक़ीनन सच्चे हैं (49)
और उन लोगों ने एक तदबीर की और हमने भी एक तदबीर की और (हमारी तदबीर की) उनको ख़बर भी न हुयी (50)
