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08 अगस्त 2025

फिर जब वह तुमसे तकलीफ को दूर कर देता है तो बस फौरन तुममें से कुछ लोग अपने परवरदिगार को शरीक ठहराते हैं

 और ख़ुदा ने फरमाया था कि दो दो माबूद न बनाओ माबूद तो बस वही यकता ख़ुदा है सिर्फ मुझी से डरते रहो (51)
और जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में हैं (ग़रज़) सब कुछ उसी का है और ख़ालिस फरमाबरदारी हमेशा उसी को लाजि़म (जरूरी) है तो क्या तुम लोग ख़ुदा के सिवा (किसी और से भी) डरते हो (52)
और जितनी नेअमतें तुम्हारे साथ हैं (सब ही की तरफ से हैं) फिर जब तुमको तकलीफ छू भी गई तो तुम उसी के आगे फरियाद करने लगते हो (53)
फिर जब वह तुमसे तकलीफ को दूर कर देता है तो बस फौरन तुममें से कुछ लोग अपने परवरदिगार को शरीक ठहराते हैं (54)
ताकि जो (नेअमतें) हमने उनको दी है उनकी नाशुक्री करें तो (ख़ैर दुनिया में चन्द रोज़ चैन कर लो फिर तो अनक़रीब तुमको मालूम हो जाएगा (55)
और हमने जो रोज़ी उनको दी है उसमें से ये लोग उन बुतों का हिस्सा भी क़रार देते है जिनकी हक़ीकत नहीं जानते तो ख़ुदा की (अपनी) कि़स्म जो इफ़तेरा परदाजि़याँ तुम करते थे (क़यामत में) उनकी बाज़पुर्स (पूछ गछ) तुम से ज़रुर की जाएगी (56)
और ये लोग ख़ुदा के लिए बेटियाँ तजवीज़ करते हैं (सुबान अल्लाह) वह उस से पाक व पाकीज़ा है (57)
और अपने लिए (बेटे) जो मरग़ूब (दिल पसन्द) हैं और जब उसमें से किसी एक को लड़की पैदा होने की जो खुशख़बरी दीजिए रंज के मारे मुँह काला हो जाता है (58)
और वह ज़हर का सा घूँट पीकर रह जाता है (बेटी की) जिसकी खुशखबरी दी गई है अपनी क़ौम के लोगों से छिपा फिरता है (और सोचता है) कि क्या इसको जि़ल्लत उठाके जि़न्दा रहने दे या (जि़न्दा ही) इसको ज़मीन में गाड़ दे-देखो तुम लोग किस क़दर बुरा एहकाम (हुक्म) लगाते हैं (59)
बुरी (बुरी) बातें तो उन्हीं लोगों के लिए ज़्यादा मुनासिब हैं जो आखि़रत का यक़ीन नहीं रखते और ख़ुदा की शान के लायक़ तो आला सिफते (बहुत बड़ी अच्छाइया) हैं और वही तो ग़ालिब है (60)

07 अगस्त 2025

समीप राज्य में कोटा शहर से,280 km दूर पहुंची टीम ने लिया,ग्राम अंक्या कलां का पहला नेत्रदान

  समीप राज्य में कोटा शहर से,280 km दूर पहुंची टीम ने लिया,ग्राम अंक्या कलां का पहला नेत्रदान ।

2. कोटा शहर से 280 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के, जावरा में जाकर लिया नेत्रदान ।
3. *नेत्रदान संकल्पित महिला का देहांत,अंतिम इच्छा पूर्ण करने,कोटा से 280 किलोमीटर मध्यप्रदेश में गयी टीम*


आज सुबह मध्यप्रदेश के जिले रतलाम की तहसील जावरा के आक्या कला ग्राम निवासी राधेश्याम और मनोहरलाल श्रीवास्तव की माताजी संपत बाई श्रीवास्तव का आकस्मिक निधन हुआ। संपत बाई का शिक्षित परिवार प्रारंभ से ही सामाजिक कार्यों के प्रति जागरूक है, समाचार पत्रों से प्रेरित होकर माताजी संपत बाई ने अपने नेत्रदान की इच्छा दोनों पुत्रों को बता रखी थी।

संपत बाई के निधन होते ही, राजकीय शिक्षा सेवा में कार्यरत दोनों पुत्र राधेश्याम व मनोहरलाल ने माताजी की इच्छा के अनुसार उनके नेत्रदान करने के लिए तुरंत ही संस्था शाइन इंडिया फाउंडेशन के ज्योति मित्र अमित अग्रवाल, कुंजबिहारी निगम और चित्रांश वेलफेयर सोसाइटी, गंगधार के नरेश निगम को नेत्रदान करवाने के लिए कहा।

अमित अग्रवाल के अनुसार परिवार की नेत्रदान इच्छा प्राप्त होने के बाद उन्होंने जावरा के पास के नेत्र संकलन केंद्र आगर और बड़नगर में टेक्नीशियन को नेत्रदान लेने के लिए कहा, पर दोनों ही व्यक्तिगत कारणों से उपलब्ध नहीं हो सके, ऐसे में नेत्रदान संकल्पित माताजी के नेत्रदान करवाने का कार्य असंमजस में आ गया। ऐसे में उन्होंने कोटा में शाइन इंडिया के डॉ कुलवंत गौड़ को सारी स्थिति बतायी, सारी कोशिशें के बाद डॉ गौड़ कोटा से नेत्र संकलन वाहिनी ज्योति रथ को 5 घंटे में स्वयं चला कर 280 किलोमीटर दूर आक्या कला, जावरा में जा पहुंचे।

परिवार की ओर से दिए गए समय पर टीम को देखकर,सभी आश्चर्यचकित हुए, इसके बाद घर परिवार के 200 से अधिक लोगों के बीच में नेत्रदान की प्रक्रिया संपन्न हुई। डॉ गौड़ ने नेत्रदान लेने के बाद उपस्थित जनसमूह को, नेत्रदान के बारे में सभी जरूरी जानकारी दी, और मौके पर ही सभी नेत्रदान से जुड़ी भ्रांतियों का निवारण किया,और शोकाकुल परिवार के सदस्यों को संस्था की ओर से प्रशस्ति पत्र और नेत्रदानी गौरव पट्टीका भेंट की। नेत्रदान के इस कार्य में संस्था के भवानीमंडी शहर संयोजक कमलेश गुप्ता दलाल और रामगंज मंडी संयोजक संजय विजावत का भी सहयोग रहा।

नेत्रदान प्रक्रिया के समय उपस्थित सभी ने पहली बार देखा कि,नेत्रदान में सिर्फ आँख के ठीक सामने का पारदर्शी हिस्सा, जिसे कॉर्निया कहते हैं,वही लिया गया है। इस प्रक्रिया में न कोई रक्त आता और नहीं चेहरे पर किसी तरह की कोई विकृति आती है। 10 मिनट में होने वाली यह प्रक्रिया मृत्यु के बाद 6 से 8 घंटे तक संभव है, यदि मृत्यु रात में हुई है या मौसम ठंडा है तो 10 घंटे में भी नेत्रदान संभव है। जब भी कभी किसी परिवार में कोई मृत्यु होती है और परिजन उनके नेत्रदान करवाना चाहते हैं,तो टीम के आने तक दिवंगत की आंखों को पूरी तरह बंद कर दें,आंखों पर हर आधे घंटे में गीला रुमाल रखते रहे,और पंखा बंद रखें।

सुधा मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर राजेन्द्र अग्रवाल को उनकी 68 वीं सालगिराह पर बधाई, मुबारकबाद

 

सुधा मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर राजेन्द्र अग्रवाल को उनकी 68 वीं सालगिराह पर बधाई, मुबारकबाद
कोटा 6 अगस्त, झालावाड़ ज़िले के एक छोटे से कस्बे भवानीमण्डी में पले बढ़े, प्रतिभावान डॉक्टर राजेन्द्र अग्रवाल निदेशक सुधा हॉस्पिटल को उनकी सालगिराह पर, उनके इलाज में किफायती खर्च के साथ शिफा की पुरखुलूस दुआएं, डॉक्टर राजेंद्र अग्रवाल, जिन्हें लोग डॉक्टर आर के अग्रवाल के नाम से भी जानते है, झालावाड़ में प्राथमिक पढ़ाई के बाद , जयपुर मेडिकल कॉलेज में एम बी बी एस करने गए, फिर वहीं से मास्टर ऑफ सर्जरी पास कर, अपने ग्रह ज़िले झालावाड़ के भवानी मण्डी में चिकित्सा सेवा में कार्यरत रहे, उनकी खुश अख़लाक़ी, मुस्कुराता मासूम चेहरा, विनम्रता, साफ गोई, इलाज में शिफा के साथ ऑपरेशन यानी सर्जरी में उनकी मास्टरी, सूक्ष्म सर्जरी में भी कामयाबी का परफेक्ट हुनर ने उन्हें झालावाड़ ही नहीं कोटा सम्भाग में उन्हें विख्यात कर दिया, डॉक्टर अग्रवाल का विवाह ओशो समर्थित विचारक डॉक्टर सुधा से होने के बाद, चिकित्सा क्षेत्र में डॉक्टर अग्रवाल ने चिकित्सा व्यवसाय को चुनोती के रूप में स्वीकार किया और फिर कोटा तलवंडी मार्ग पर मल्टीस्पेशिलिटी सेवा के साथ सुधा हॉस्पिटल की शुरुआत की, 1999 में डॉक्टर अग्रवाल कोटा में आकर ऐसे जमे कि कोटा में गम्भीर से गम्भीर मरीजों के इलाज में माहिर हुए और असम्भव ऑपरेशन मामलों में भी कामयाबी हांसिल कर मरीजों की जान बचाई, जब हार्ट सर्जरी के लिये लोगों को कोटा से बाहर दिल्ली जयपुर जाना पढ़ता था तब डॉक्टर अग्रवाल ने कोटा में बाईपास हार्ट सर्जरी के दिल्ली के डॉक्टर त्रेहन, डॉक्टर राजीव के ज़रिए हार्ट सर्जरी केम्प लगवाए, इस काम मे, यूँ तो डॉक्टर अग्रवाल का व्यवहार, उनके स्टाफ समन्वयक परवेज़ खान सहित काफी लोगों का योगदान रहा, फिर डॉक्टर राकेश जिंदल के साथ मिलकर हार्ट सर्जरी , विशेषज्ञ सेवा शुरू हुई, अब डॉक्टर अग्रवाल के पुत्र पलकेश अग्रवाल और टीम हार्ट सर्जरी कार्य से जुड़े हैं, यूँ तो सुधा हॉस्पिटल कोटा में निजी चिकित्सा सेवा में नींव की ईंट है, इनके बाद यहां सैकड़ों निजी अस्पताल खुले लेकिन सुधा हॉस्पिटल का ब्रांड कोई दूसरा हांसिल नहीं कर सका, यही वजह है के डॉक्टर राजेन्द्र अग्रवाल की मेहनत लगन से कोटा में सुधा नर्सिंग कॉलेज और अब हाडौती का पहला निजी मेडिकल कॉलेज के रूप में सुधा मेडिकल कॉलेज इनके प्रयासों से खुला है, डॉक्टर अग्रवाल शुद्ध चिकित्सक हैं उन्हें सियासत से कोई वास्ता नहीं, वोह किसी के प्रभाव में नहीं आते, शुद्ध चिकित्सक की तर्ज़ पर सेवाएं देते हैं, सीधे, सिंपल , अपने इतने बड़े चिकित्सक होने का उन्हें कोई ग़ुरूर तकब्बुर भी नहीं है, न्यायालय में गवाही के वक़्त भी आम गवाह की तरह व्यवहार, इन्हें ओर बढ़ा बना देता है, इनके अपने समाज के निजी कार्यक्रमों में जब यह सभी के साथ पंगत में बैठते है तो इनकी इस सादगी को सभी लोग सेल्यूट करते हैं, इनकी अपनी दिनचर्या तनाव मुक्त है , सुबह थोड़ी एक्सरसाइज़, पूजा, पाठ, वैचारिक उपदेश , फिर मरीजों के इलाज में दिनचर्या शुरू, गम्भीर मरीज़ का तनावमुक्त रहकर सफलतम ऑपरेशन, सफलतम इलाज का हुनर कोई इनसे सीखे, अस्पताल की बहुमंज़िली इमारत नें लिफ्ट को इग्नोर कर दर्जनों बार सीढ़ियों से चढ़ना उतरना इन्हें फिट रखता है, डॉक्टर अग्रवाल सुधा के नाम से चिकित्सा क्षेत्र का इतना बढ़ा साम्राज्य स्थापित करने वाले ऐतिहासिक शख्सियत बन गए हैं, यूँ तो उनके परिवार में वोह खुद, पत्नी, पुत्र, पुत्र वधु चिकित्सक हैं, लेकिन डॉक्टर अग्रवाल का कोई सानी नहीं, लोग दबे अल्फाजों में कहते हैं काश यह व्यवहार, यह चिकित्सकीय हुनर, यह विनम्र प्रबन्धन के साथ तरक़्क़ी का यह हुनर उनकी भविष्य की पीढ़ी में पूरा नहीं तो आधे से आधा भी आ जाये तो सुधा चिकित्सक ग्रुप कोटा ही नहीं हाड़ौती ही नहीं, राजस्थान में ही नहीं देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में से एक हो जाये, चिकित्सा क्षेत्र की तरक़्क़ी में कई बाधाएं भी होती है तरक़्क़ी के खिलाफ प्रोपोगंडा भी होता है, कुछ जोंकें भी मुफ्त में खून चूसने के लिये ऐसे वक्त में चेंट जाती हैं लेकिन सभी से बचकर निकलना ओर चिकित्सा व्यवसाय को ज़िंदाबाद करने का हुनर डॉक्टर अग्रवाल के पास है, इसीलिए वोह ज़िंदाबाद हैं, डॉक्टर अग्रवाल को उनके जन्म दिन पर एक बार फिर बधाई, मुबारकबाद, अख़्तर खान अकेला एडवोकेट 9829086339

* आज जब आर्यन लेखिका मंच द्वारा संस्कृति,साहित्य,मीडिया फोरम के तत्वावधान में आयोजित

 

अभिव्यक्ति
बच्चें भी कम नहीं
****************
** आज जब आर्यन लेखिका मंच द्वारा संस्कृति,साहित्य,मीडिया फोरम के तत्वावधान में आयोजित " बचपन और बरसात " की प्राप्त बाल कविताओं की प्रविष्टियों पर नजर डाली तो ज्ञात हुआ बच्चें भी किसी से कम नहीं है। आश्चर्य हुआ कुल प्राप्त 58 प्रविष्टियों में बच्चों और बड़ों की बराबर 28 - 28 प्रविष्टियां रही। (दृश्य एक )
** स्कूलों के दायरे से बाहर निकल कर इतने बच्चों का "संभाग स्तर की बाल कविता प्रतियोगिता" में भाग लेना कोई छोटी बात नहीं है। पूर्व में भी झालावाड़ में एक स्कूल के बच्चों ने राष्ट्रीय बाल कविता प्रतियोगिता में भाग लिया और बाल वर्ग में विजेता भी रहे। बच्चों को मार्गदर्शन मिले और कोई उनका हौंसला बढ़ा कर मौका दे तो वे साहित्य में भी पीछे रहने वाले नहीं हैं, यह बच्चों ने दिखा दिया। ( दृश्य दो )
** बीते डेढ़ साल से कोटा में बच्चों की सोच को मानसिक स्तर पर साहित्य से जोड़ने के छोटे - छोटे प्रयासों का असर दिखाई देने लगा है। कुछ स्कूलों में बच्चें कविता और छोटी - छोटी कहानी लिखने लगे है। कोटा के केशोपुरा सेक्टर 6 का स्कूल, सुल्तानपुर में मोरपा का सरकारी और निजी स्कूल, भुवनेश बाल विद्यालय और झालावाड़ का एक विद्यालय के उदाहरण पूर्व में सामने आ ही चुके हैं। ( दृश्य तीन )
** साहित्यकारों, शिक्षकों, अविभावकों और साहित्यिक संस्थाओं का फर्ज बनता है कि समय - समय पर बच्चों को ऐसे अवसर प्रदान करें कि वे किताबी ज्ञान के साथ - साथ अपनी संस्कृति और साहित्य से जुड़ कर ज़मीन से भी जुड़े। बिना किसी के कहने की प्रतिक्षा कर अपने - अपने स्तर पर सभी को ये छोटे - छोटे प्रयास भावी पीढ़ी के लिए करने पर विचार अवश्य करना चाहिए, ऐसा मेरा विचार है। ( दृश्य चार )
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

और अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं (आखि़रत का सवाब) जानते होते

 और जिन लोगों ने (कुफ़्फ़ार के ज़ुल्म पर ज़ुल्म सहने के बाद ख़ुदा की खुषी के लिए घर बार छोड़ा हिजरत की हम उनको ज़रुर दुनिया में भी अच्छी जगह बिठाएँगें और आखि़रत की जज़ा तो उससे कहीं बढ़ कर है काश ये लोग जिन्होंने ख़ुदा की राह में सखि़्तयों पर सब्र किया (41)
और अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं (आखि़रत का सवाब) जानते होते (42)
और (ऐ रसूल) तुम से पहले आदमियों ही को पैग़म्बर बना बनाकर भेजा किए जिन की तरफ हम वहीं भेजते थे तो (तुम एहले मक्का से कहो कि) अगर तुम खुद नहीं जानते हो तो एहले जि़क्र (आलिमों से) पूछो (और उन पैग़म्बरों को भेजा भी तो) रौशन दलीलों और किताबों के साथ (43)
और तुम्हारे पास क़ुरान नाजि़ल किया है ताकि जो एहकाम लोगों के लिए नाजि़ल किए गए है तुम उनसे साफ साफ बयान कर दो ताकि वह लोग खुद से कुछ ग़ौर फिक्र करें (44)
तो क्या जो लोग बड़ी बड़ी मक्कारियाँ (शिर्क वग़ैरह) करते थे (उनको इस बात का इत्मिनान हो गया है (और मुत्तलिक़ ख़ौफ नहीं) कि ख़ुदा उन्हें ज़मीन में धसा दे या ऐसी तरफ से उन पर अज़ाब आ पहुँचे कि उसकी उनको ख़बर भी न हो (45)
उनके चलते फिरते (ख़ुदा का अज़ाब) उन्हें गिरफ्तार करे तो वह लोग उसे ज़ेर नहीं कर सकते (46)
या वह अज़ाब से डरते हो तो (उसी हालत में) धर पकड़ करे इसमें तो शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ रहम वाला है (47)
क्या उन लोगों ने ख़ुदा की मख़लूक़ात में से कोई ऐसी चीज़ नहीं देखी जिसका साया (कभी) दाहिनी तरफ और कभी बायी तरफ पलटा रहता है कि (गोया) ख़ुदा के सामने सर सजदा है और सब इताअत का इज़हार करते हैं (48)
और जितनी चीज़ें (चादँ सूरज वग़ैरह) आसमानों में हैं और जितने जानवर ज़मीन में हैं सब ख़ुदा ही के आगे सर सजूद हैं और फरिश्ते तो (है ही) और वह हुक्में ख़ुदा से सरकशी नहीं करते (49) (सजदा)
और अपने परवरदिगार से जो उनसे (कहीं) बरतर (बड़ा) व आला है डरते हैं और जो हुक्में दिया जाता है फौरन बजा लाते हैं (50)

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