आपका-अख्तर खान "अकेला"
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
27 मार्च 2025
ज़माना कहता है भारत में पत्रकारिता मर गई है ,
मगर (हाँ) जिन लोगों ने इससे पहले कि तुम इनपर क़ाबू पाओ तौबा कर लीे तो उनका गुनाह बख़्श दिया जाएगा क्योंकि समझ लो कि ख़ुदा बेशक बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
(तब उसे फि़क्र हुयी कि लाश को क्या करे) तो ख़ुदा ने एक कौवे को भेजा कि
वह ज़मीन को कुरेदने लगा ताकि उसे (क़ाबील) को दिखा दे कि उसे अपने भाई की
लाश क्योंकर छुपानी चाहिए (ये देखकर) वह कहने लगा हाए अफ़सोस क्या मैं उस
से भी आजिज़ हॅू कि उस कौवे की बराबरी कर सकॅू कि (बला से यह भी होता) तो
अपने भाई की लाश छुपा देता अलगरज़ वह (अपनी हरकत से) बहुत पछताया (31)
इसी सबब से तो हमने बनी इसराईल पर वाजिब कर दिया था कि जो श्शख़्स किसी
को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा में (बल्कि
नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने
एक आदमी को जिला दिया तो गोया उसने सब लोगों को जिला लिया और उन (बनी
इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके
हैं (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन पर ज़्यादतिया
करते रहे (32)
जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ते भिड़ते हैं (और एहकाम को नहीं मानते)
और फ़साद फैलाने की ग़रज़ से मुल्को (मुल्को) दौड़ते फिरते हैं उनकी सज़ा
बस यही है कि (चुन चुनकर) या तो मार डाले जाए या उन्हें सूली दे दी जाए या
उनके हाथ पॉव हेर फेर कर एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पॉव काट डाले जाए या
उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए यह रूसवाई तो उनकी
दुनिया में हुयी और फिर आख़ेरत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब ही है (33)
मगर (हाँ) जिन लोगों ने इससे पहले कि तुम इनपर क़ाबू पाओ तौबा कर लीे तो
उनका गुनाह बख़्श दिया जाएगा क्योंकि समझ लो कि ख़ुदा बेशक बड़ा बख़्शने
वाला मेहरबान है (34)
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरते रहो और उसके (तक़र्रब {क़रीब होने} के) ज़रिये
की जुस्तजू में रहो और उसकी राह में जेहाद करो ताकि तुम कामयाब हो जाओ
(35)
इसमें शक नहीं कि जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया अगर उनके पास ज़मीन
में जो कुछ (माल ख़ज़ाना) है (वह) सब बल्कि उतना और भी उसके साथ हो कि
रोज़े क़यामत के अज़ाब का मुआवेज़ा दे दे (और ख़ुद बच जाए) तब भी (उसका ये
मुआवेज़ा) कु़बूल न किया जाएगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (36)
वह लोग तो चाहेंगे कि किसी तरह जहन्नुम की आग से निकल भागे मगर वहाँ से
तो वह निकल ही नहीं सकते और उनके लिए तो दाएमी अज़ाब है (37)
और चोर ख़्वाह मर्द हो या औरत तुम उनके करतूत की सज़ा में उनका (दाहिना)
हाथ काट डालो ये (उनकी सज़ा) ख़ुदा की तरफ़ से है और ख़ुदा (तो) बड़ा
ज़बरदस्त हिकमत वाला है (38)
हाँ जो अपने गुनाह के बाद तौबा कर ले और अपने चाल चलन दुरूस्त कर लें तो
बेशक ख़ुदा भी तौबा कु़बूल कर लेता है क्योंकि ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला
मेहरबान है (39)
ऐ शख़्स क्या तू नहीं जानता कि सारे आसमान व ज़मीन (ग़रज़ दुनिया जहान)
में ख़ास ख़ुदा की हुकूमत है जिसे चाहे अज़ाब करे और जिसे चाहे माफ़ कर दे
और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है (40)
26 मार्च 2025
अखंड टाइम्स एक्सक्लूसिव साक्षात्कार: कोटा कोचिंग माफिया, छात्रों की मानसिक स्थिति और शिक्षा की गिरती साख
विज्ञापन के नीचे दबकर रह जाती है कोचिंग छात्रों की असली समस्या
ऐ मेरी क़ौम (शाम) की उस मुक़द्दस ज़मीन में जाओ जहाँ ख़ुदा ने तुम्हारी तक़दीर में (हुकूमत) लिख दी है और दुशमन के मुक़ाबले पीठ न फेरो (क्योंकि) इसमें तो तुम ख़ुद उलटा घाटा उठाओगे
ऐ मेरी क़ौम (शाम) की उस मुक़द्दस ज़मीन में जाओ जहाँ ख़ुदा ने तुम्हारी
तक़दीर में (हुकूमत) लिख दी है और दुशमन के मुक़ाबले पीठ न फेरो (क्योंकि)
इसमें तो तुम ख़ुद उलटा घाटा उठाओगे (21)
वह लोग कहने लगे कि ऐ मूसा इस मुल्क में तो बड़े ज़बरदस्त (सरकश) लोग
रहते हैं और जब तक वह लोग इसमें से निकल न जाए हम तो उसमें कभी पॉव भी न
रखेंगे हाँ अगर वह लोग ख़ुद इसमें से निकल जाए तो अलबत्ता हम ज़रूर जाएगे
(22)
(मगर) वह आदमी (यूशा क़लिब) जो ख़ुदा का ख़ौफ़ रखते थे और जिनपर ख़ुदा ने
ख़ास अपना फ़ज़ल (करम) किया था बेधड़क बोल उठे कि (अरे) उनपर हमला करके
(बैतुल मुक़दस के फाटक में तो घुस पड़ो फिर देखो तो यह ऐसे बोदे हैं कि)
इधर तुम फाटक में घुसे और (ये सब भाग खड़े हुए और) तुम्हारी जीत हो गयी और
अगर सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखो (23)
वह कहने लगे एक मूसा (चाहे जो कुछ हो) जब तक वह लोग इसमें हैं हम तो
उसमें हरगिज़ (लाख बरस) पॉव न रखेंगे हाँ तुम जाओ और तुम्हारा ख़ुदा जाए ओर
दोनों (जाकर) लड़ो हम तो यहीं जमे बैठे हैं (24)
तब मूसा ने अर्ज़ की ख़ुदावन्दा तू ख़ूब वाकि़फ़ है कि अपनी ज़ाते ख़ास और
अपने भाई के सिवा किसी पर मेरा क़ाबू नहीं बस अब हमारे और उन नाफ़रमान
लोगों के दरमियान जुदाई डाल दे (25)
हमारा उनका साथ नहीं हो सकता (ख़ुदा ने फ़रमाया) (अच्छा) तो उनकी सज़ा यह
है कि उनको चालीस बरस तक की हुकूमत नसीब न होगा (और उस मुद्दते दराज़ तक)
यह लोग (मिस्र के) जंगल में सरगरदा रहेंगे तो फिर तुम इन बदचलन बन्दों पर
अफ़सोस न करना (26)
(ऐ रसूल) तुम इन लोगों से आदम के दो बेटों (हाबील, क़ाबील) का सच्चा
क़स्द बयान कर दो कि जब उन दोनों ने ख़ुदा की दरगाह में नियाज़ें चढ़ाई तो
(उनमें से) एक (हाबील) की (नज़र तो) क़ुबूल हुयी और दूसरे (क़ाबील) की नज़र
न क़ुबूल हुयी तो (मारे हसद के) हाबील से कहने लगा मैं तो तुझे ज़रूर मार
डालूंगा उसने जवाब दिया कि (भाई इसमें अपना क्या बस है) ख़ुदा तो सिर्फ
परहेज़गारों की नज़र कु़बूल करता है (27)
अगर तुम मेरे क़त्ल के इरादे से मेरी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाओगे (तो ख़ैर
बढ़ाओ) (मगर) मैं तो तुम्हारे क़त्ल के ख़्याल से अपना हाथ बढ़ाने वाला
नहीं (क्योंकि) मैं तो उस ख़ुदा से जो सारे जहाँन का पालने वाला है ज़रूर
डरता हॅू (28)
मैं तो ज़रूर ये चाहता हॅू कि मेरे गुनाह और तेरे गुनाह दोनों तेरे सर हो
जाए तो तू (अच्छा ख़ासा) जहन्नुमी बन जाए और ज़ालिमों की तो यही सज़ा है
(29)
फिर तो उसके नफ़्स ने अपने भाई के क़त्ल पर उसे भड़का ही दिया आखि़र उस
(कम्बख़्त ने) उसको मार ही डाला तो घाटा उठाने वालों में से हो गया (30)