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07 अगस्त 2025

समीप राज्य में कोटा शहर से,280 km दूर पहुंची टीम ने लिया,ग्राम अंक्या कलां का पहला नेत्रदान

  समीप राज्य में कोटा शहर से,280 km दूर पहुंची टीम ने लिया,ग्राम अंक्या कलां का पहला नेत्रदान ।

2. कोटा शहर से 280 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के, जावरा में जाकर लिया नेत्रदान ।
3. *नेत्रदान संकल्पित महिला का देहांत,अंतिम इच्छा पूर्ण करने,कोटा से 280 किलोमीटर मध्यप्रदेश में गयी टीम*


आज सुबह मध्यप्रदेश के जिले रतलाम की तहसील जावरा के आक्या कला ग्राम निवासी राधेश्याम और मनोहरलाल श्रीवास्तव की माताजी संपत बाई श्रीवास्तव का आकस्मिक निधन हुआ। संपत बाई का शिक्षित परिवार प्रारंभ से ही सामाजिक कार्यों के प्रति जागरूक है, समाचार पत्रों से प्रेरित होकर माताजी संपत बाई ने अपने नेत्रदान की इच्छा दोनों पुत्रों को बता रखी थी।

संपत बाई के निधन होते ही, राजकीय शिक्षा सेवा में कार्यरत दोनों पुत्र राधेश्याम व मनोहरलाल ने माताजी की इच्छा के अनुसार उनके नेत्रदान करने के लिए तुरंत ही संस्था शाइन इंडिया फाउंडेशन के ज्योति मित्र अमित अग्रवाल, कुंजबिहारी निगम और चित्रांश वेलफेयर सोसाइटी, गंगधार के नरेश निगम को नेत्रदान करवाने के लिए कहा।

अमित अग्रवाल के अनुसार परिवार की नेत्रदान इच्छा प्राप्त होने के बाद उन्होंने जावरा के पास के नेत्र संकलन केंद्र आगर और बड़नगर में टेक्नीशियन को नेत्रदान लेने के लिए कहा, पर दोनों ही व्यक्तिगत कारणों से उपलब्ध नहीं हो सके, ऐसे में नेत्रदान संकल्पित माताजी के नेत्रदान करवाने का कार्य असंमजस में आ गया। ऐसे में उन्होंने कोटा में शाइन इंडिया के डॉ कुलवंत गौड़ को सारी स्थिति बतायी, सारी कोशिशें के बाद डॉ गौड़ कोटा से नेत्र संकलन वाहिनी ज्योति रथ को 5 घंटे में स्वयं चला कर 280 किलोमीटर दूर आक्या कला, जावरा में जा पहुंचे।

परिवार की ओर से दिए गए समय पर टीम को देखकर,सभी आश्चर्यचकित हुए, इसके बाद घर परिवार के 200 से अधिक लोगों के बीच में नेत्रदान की प्रक्रिया संपन्न हुई। डॉ गौड़ ने नेत्रदान लेने के बाद उपस्थित जनसमूह को, नेत्रदान के बारे में सभी जरूरी जानकारी दी, और मौके पर ही सभी नेत्रदान से जुड़ी भ्रांतियों का निवारण किया,और शोकाकुल परिवार के सदस्यों को संस्था की ओर से प्रशस्ति पत्र और नेत्रदानी गौरव पट्टीका भेंट की। नेत्रदान के इस कार्य में संस्था के भवानीमंडी शहर संयोजक कमलेश गुप्ता दलाल और रामगंज मंडी संयोजक संजय विजावत का भी सहयोग रहा।

नेत्रदान प्रक्रिया के समय उपस्थित सभी ने पहली बार देखा कि,नेत्रदान में सिर्फ आँख के ठीक सामने का पारदर्शी हिस्सा, जिसे कॉर्निया कहते हैं,वही लिया गया है। इस प्रक्रिया में न कोई रक्त आता और नहीं चेहरे पर किसी तरह की कोई विकृति आती है। 10 मिनट में होने वाली यह प्रक्रिया मृत्यु के बाद 6 से 8 घंटे तक संभव है, यदि मृत्यु रात में हुई है या मौसम ठंडा है तो 10 घंटे में भी नेत्रदान संभव है। जब भी कभी किसी परिवार में कोई मृत्यु होती है और परिजन उनके नेत्रदान करवाना चाहते हैं,तो टीम के आने तक दिवंगत की आंखों को पूरी तरह बंद कर दें,आंखों पर हर आधे घंटे में गीला रुमाल रखते रहे,और पंखा बंद रखें।

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