भाई, सुरेश चिपलुंगर की वाल से,
मुम्बई हाईकोर्ट ने "बंटी-बबली" की जमानत अर्जी अस्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की है = "...किसी व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति के मकान के सामने अथवा सार्वजनिक स्थल पर बगैर अनुमति के कोई भी धार्मिक गतिविधि करना दूसरे वाले व्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिक्रमण है... राज्य सरकार द्वारा क़ानून-व्यवस्था बाधित होने की आशंका व्यक्त करते हुए जो कार्रवाई की है, वह न्यायसंगत है...".
यानी अब बंटी-बबली सुप्रीमकोर्ट जाएं, और वहां से जमानत लेकर आएं... तब छोड़ा जाएगा...
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शुरू से शुरू करें, तो ये हनुमान चालीसा वाला विवाद आरम्भ कैसे हुआ?? = जब बंटी-बबली ने शिवसेना को सरेआम धमकियाँ दीं... १) हम तुम्हारे गेट के सामने ही हनुमान चालीसा पढेंगे... (महाराष्ट्र में ८००० से अधिक मंदिर होते हुए भी) और... २) अगर रोकने की हिम्मत हो तो रोक के दिखाओ...
स्वाभाविक सी बात है कि इन धमकियों का "राजनैतिक आशय" कोई दूसरी कक्षा का बच्चा भी समझ लेगा... परन्तु "बबली" के साथ दिक्कत ये हो गयी कि सामने शिवसेना पड़ गयी,,, जो हमेशा से "अबे" का जवाब "भग बे" में देना जानती है, और धमकियों के आगे तो झुकने वाली कतई नहीं है...
क्योंकि शिवसेना कोई "महान, विशाल, विराट, नैतिक, ईमानदार" राजनैतिक पार्टी जैसी तो है नहीं... कि शाहीनबाग में एक चौथाई दिल्ली को महीनों तक बंधक बनाकर रखा जाए... या किसान आन्दोलन वाले लोग सरेआम धमकी देते हुए एक साल तक देश की राजधानी को जाम कर रखें... फिर भी वह "महान" पार्टी उनके सामने मिमियाती-घिघियाती रहे..
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