विश्व पुस्तक दिवस की पूर्व संध्या पर 'फुर्सत के सबक' काव्य संग्रह का लोकार्पण ।
'फुर्सत के सबक' कृति मधुमास का संगम है - डॉ. शशिप्रकाश चौधरी
कोटा। राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय, कोटा में ममता 'महक' के काव्य संग्रह 'फुर्सत के सबक' का विमोचन हुआ ।
इस समारोह के मुख्य अतिथि थे डॉ. शशिप्रकाश चौधरी, विशिष्ट अतिथि अम्बिकादत्त चतुर्वेदी, डॉ. अनिता वर्मा, डॉ. रामावतार सागर, महाकवि किशन वर्मा, रामनारायण हलधर, जगदीश भारती । मुख्य वक्ता विजय जोशी रहे और कार्यक्रम की अध्यक्षता की- जीतेन्द्र निर्मोही ने ।
कार्यक्रम का शुभारंभ माँ वागीशा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन और सरस्वती वंदना के साथ हुआ । सरस्वती वंदना कुमारी प्रस्तुति ने प्रस्तुत की । ततपश्चात अतिथियों का स्वागत माल्यार्पण और प्रतीक चिन्ह भेंट कर किया गया ।
स्वागत भाषण के दौरान डॉ. दीपक श्रीवास्तव ने कहा कि-" पुस्तकों से ही पुस्तकालय समृद्ध होता है और पुस्तकें जीवन की दशा और दिशा तय करती हैं । इस कड़ी में 'फुर्सत के सबक' काव्य संग्रह समाज को एक नई दिशा देगी ।"
इस अवसर पर कृति पर बोलते हुए मुख्य अतिथि डॉ. शशिप्रकाश चौधरी ने कहा कि-" ममता 'महक' की चिन्ता में वात्सल्य की चाँदनी भी है और स्त्रियों के कर्म कोलाहल की आपाधापी भी । यदि स्त्री आखिरी उपनिवेश है, तो उससे मुक्ति की छटपटाहट भी यह कृति है । पश्चिम के स्त्री विमर्श के उलट, इनकी रचनाएँ स्त्रियोचित सहज सिद्धि की तरह पूरी कृति में गूँजती रहती है। 'फुर्सत के सबक' कृति मधुमास का संगम है ।"
वरिष्ठ साहित्यकार और कार्यक्रम विशिष्ट अतिथि अम्बिकादत्त चतुर्वेदी ने कहा कि-" वर्तमान में नए लेखक आ रहे हैं, वे समाज के गहरे भावों को प्रकट कर रहे हैं, जो यथार्थ और सापेक्षित काल का वर्णन कर रहे हैं । साहित्य समाज को आंदोलित और प्रेरित करता है और कविता मनुष्य की जड़ता को तोड़ देती है, उसे कर्मपथ की ओर अग्रसर करती है ।" डॉ. रामावतार सागर ने कहा कि-"साहित्य वही है, जो समाज की सारी सीमाओं और दीवारों को तोड़ दे, वही सच्चा साहित्य है। 'महक' की कविताओं में भी एक प्रकार की ताज़गी है, जो नये झोकें का अहसास कराती है।" मुख्य वक्ता विजय जोशी ने कहा कि -"ममता महक की यह काव्य कृति ज़िन्दगी के लम्हों को अहसासते हुए उस पथ की सरसराहट है, जहाँ भाव और संवेदना के तट पथिक को अपने स्वयं से बतियाने का अवसर प्रदान करते हैं।" ममता महक ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताया कि -" मेरी ये कृति मेरे फ़ुर्सत के लम्हों की रचनाओं का संकलन है, इसमें ज़िंदगी के कई रंग हैं।"
डॉ. रेणु श्रीवास्तव ने कवयित्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महक उभरती हुई नवांकुर लेखिका है, जो समीक्षा के क्षेत्र (हाडौती और हिन्दी) में भी अपना नाम जुड़ा चुकी हैं ।" अध्यक्षीय उद्बोधन में जीतेन्द्र निर्मोही ने कहा कि-" ममता महक हाड़ौती अंचल की परवीन शाकिर है। उनकी कहन हर एक मौजू पर है, आधुनिक शायरी में उनका जवाब नहीं । वो जदीद शायरी की मश्कून शायरा है जिनका मश्के सुखन आज चिराग की मानिंद उजास दे रहा है। उनकी ग़ज़लों में मुख्तलिफ मौजूआत के अलावा एक नई जिहत (दिशा) है,नया आहंग (स्वर) है । उनकी कहन में नजाकत और नफासत के कितने ही गुलों की रंगों सूं पोशिदा है। सच तो यह है उनकी ग़ज़लें ज़हनी जिन्दगी और तहज़ीबी फिजा की नुमाइंदगी करती हैं।" इस अवसर पर महाकवि किशन वर्मा ने कहा-" कविता और गीत जीवन की उमंग और तरंग है ।" साहित्यकार जगदीश भारती ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लोक का साहित्य और भाषाएँ समाप्त होती जा रही हैं, पर ममता महक हाडौती और हिन्दी में कविताएँ और समीक्षाएँ भी लिख रही हैं, यह बड़ी बात है । शोधार्थी खुशवंत मेहरा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया । इस अवसर पर रामनारायण हलधर, किशन प्रणय, डॉ. नन्दकिशोर महावर ओम महावर, डॉ. मोहनलाल, नवलकिशोर महावर, आशा महावर, सुनीता, किशनलाल, बसंतीदेवी, सी. एल, साँखला केसरीलाल आदि मौजूद रहे ।
कार्यक्रम का सफल संचालन कवि राजेन्द्र पँवार ने किया ।
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