नैत्रदान से जुड़े समाज सेवक का पुत्र जन्म पर रक्तदान
बीते
सप्ताह 25 दिसम्बर को शाइन इंडिया फाउंडेशन के साथ बीते 7 सालों से
नैत्रदान के लिये कार्य कर रहे टिंकु ओझा को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई,इस
अवसर पर उन्होंने गुना स्थित राजकीय ब्लड बैंक में रक्तदान किया। उन्होंने
पहले से ही यह मन बना लिया था कि,यदि पत्नि श्रीमती सुमन ओझा को प्रसव के
पहले या बाद में रक्त की जरूरत हो या न हो,मैं जो भी खुश-खबर आयेगी, उसके
उपरांत रक्तदान जरूर करूँगा,और ऐसा ही हुआ भी,जैसे ही उनको सूचना मिली कि
उनकी पत्नि ने पुत्र को जन्म दिया है,वह आधे घंटे बाद ही गुना ब्लड बैंक
पहुँच गये, और रक्तदान किया ।
टिंकू
वैसे भी नियमित रक्तदाता हैं,12 वर्षों से अपने जन्मदिन पर भी रक्तदान
करते आ रहे हैं । बेटे के जन्म पर रक्तदान करने के पीछे कारण यही है
कि,ज्यादा से ज्यादा युवा रक्तदान की अहमियत को समझ कर इस मुहिम को आगे
बढ़ाएं।
रक्तदान करने से
हमे अपने स्वास्थ्य लाभ में बढ़ोतरी तो होती ही है, कहीं न कहीं उन लोगों की
सहायता भी होती है जिन्हें समय रहते रक्त नही मिल पाता है, आज जब हम समाज
में इस प्रकार की पहल को बढ़ावा देंगे तो स्वतः ही इस प्रकार की पहल से
आगामी स्वास्थ्य संबंधी हानियों से बचा जा सकता है।
जागरूकता
इस विषय के लिए बहुत ही ज्यादा अहमियत रखता है, ओर हम सभी को कई प्रकार को
भ्रांतियों से बचना चाइये जिससे नये-नये सामाजिक कार्यो को बढावा मिल सके।
टिंकू
ओझा वर्तमान में इंडिया फाउंडेशन के साथ मिलकर कोटा संभाग में नेत्रदान
जागरूकता के लिए कार्य कर रहे हैं और अभी तक 500 दिवंगत पुण्य आत्माओं के
नेत्रों का संकलन भी कर चुके हैं
22
जनवरी 2019 को जब विकास नगर, जिला गुना, मध्यप्रदेश निवासी मोहनलाल ओझा जी
की सुपुत्री सुमन ओझा (तृप्ति) से उनका विवाह संपन्न हुआ उस वक्त विवाह
समारोह में दोनों पति पत्नी ने सभी पधारे हुए मेहमानों के समक्ष अंगदान की
संकल्प लेकर अनोखी मिसाल पेश की व साथ ही सभी आगंतुकों से विवाह के दौरान
उपहार लाने की बजाय नेत्रदान-अंगदान का संकल्प लेने की इच्छा जाहिर की।
वर्ष
2019 पहली बार सम्पूर्ण राजस्थान में टिंकू ओझा ने ही अपने विवाह समारोह
में संभाग में कार्य कर रही संस्था शाइन इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से
नेत्रदान-अंगदान संकल्प शिविर का आयोजन कर, एक जागरूकता की अनोखी मिसाल पेश
की।
विवाह के दौरान टिंकू
ओझा व उनकी धर्मपत्नि श्रीमती सुमन ओझा ने विवाह में आने वाले सभी
अतिथियों सर आग्रह किया कि, किसी भी तरह का उपहार न लाकर वह
अंगदान-नेत्रदान का संकल्प पत्र भर सौंपे जिससे पुनीत कार्य के प्रति
जागरूकता बढ़ेगी।
अंग के
अभाव में टिंकू ओझा ने अपनी माँ स्व. श्रीमती विद्याबाई ओझा को वर्ष 2014
में खोया था, जब से उन्हें यह ज्ञात है कि मानव अंगों का क्या महत्व होता
है, यदि वह किसी जरूरतमंद को समय पर न मिले।
टिंकू
ओझा के पिता राजेन्द्र ओझा व 2 बड़े भाई हेमराज व धर्मेंद्र ओझा का कहना है
कि, हमें आज बहुत गर्व महसूस होता है, कि हमारा छोटा भाई टिंकू
अंगदान-नेत्रदान जैसे पुनीत कार्य के प्रति पूरी तरह से समर्पित है।
टिंकू ओझा का कहना है कि, यदि हम मानव जीवन को सही मायने में सार्थक करना चाहते है तो किसी भी पुनीत कार्य मे अपना योगदान अवश्य दें।
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