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20 जनवरी 2022

कलम छुपाए बैठे हैं आज जो हुकूमतों के डर से, सदियों लानत बरसेगी ऐसे घटिया पत्रकारों पर।*

 

कलम छुपाए बैठे हैं आज जो हुकूमतों के डर से, सदियों लानत बरसेगी ऐसे घटिया पत्रकारों पर।*
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*शेख़ नसीम की कलम से।*
*JKA 24न्यूज़ (जनजन का आसरा)*
*शेख़ नसीम (भोपाल-मध्यप्रदेश)*
*भोपाल@* पत्रकारिता कोई पेशा या धंधा नही हैं और पैसा कमाने का कोई साधन (ज़रिया) नही हैं बल्कि पत्रकारिता एक धर्म है एक कर्तव्य हैं एक उपासना हैं समाज को सही राह दिखाने की एक संस्था हैं एक तंज़ीम हैं और पत्रकार समाज मे फैली बुराइयों को दूर करने और आपसी नफरतों को मिटाने के साथ ही भाईचारा कायम करवाने वाला एक रहबर होता हैं क्योंकि पत्रकार के लिखे से राष्ट्र का और समाज का निर्माण होता हैं।
पर अफसोस आज कुछ चाटुकार पत्रकारों ने पत्रकारिता की मर्यादा को तार-तार कर दिया हैं और जो लोग इनके लिखे हुए को पढ़ते हैं इनके बोले हुए को सुनते हैं और इनके दिखाए हुए को देखते हैं वही लोग आज इनको दलाल-मीडिया, गोदी-मीडिया, न्यूज़-रूम को कोठा और पत्रकारों को नेताओ की रखैल जैसे शर्मनाक नामो से पुकारते और संबोधित करते हैं आखिर इसकी वजह क्या हैं। इसके बारे में सिर्फ ये बात खुलकर सामने आई हैं कि कुछ घटिया पत्रकारों ने अपनी कलम के साथ अपने ज़मीर को भी सफेद कपड़ो में नफ़रतों की सियासत करने वालो के हाथों बेच दिया हैं। अब ये वो ही दिखा रहे हैं जो ये दिखाने को कहते हैं वो ही लिख रहे हैं जो ये लिखने को बोलते हैं अपनी सियासत को चमकाने के लिए ये सफेद कपड़ो में लिपटे नेता पत्रकारों का जबरदस्त तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं और देश को बांटने का और नफ़रतों की आग में झोंकने का काम कर रहे हैं और ये पत्रकार भी भूल रहे हैं कि उनसे कौन-कौनसे गुनाह करवाए जा रहे हैं लेकिन ये चाटुकार पत्रकार दौलत की चमक में अपने कर्तव्य और धर्म के साथ अपने कलम और ज़मीर का सौदा करके देश को ऐसी बरबादी की तरफ ले जा रहे हैं जिससे उबरने में सदियों लगेंगी।
बड़े-बड़े न्यूज़ चैनलों की डिबेट में सिवाय हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, नमाज़-पूजा, और अज़ान-आरती के सिवा कुछ नही होता हैं इन डिबेटो मे हिन्दू को मुसलमानों के खिलाफ और मुसलमानों को हिंदुओ के खिलाफ उकसाया और भड़काया जाता हैं इन डिबेटो मे जो न्यूज़-रूम से जुड़कर अपनी बात कहने आते हैं वो भी एक - दूसरे के मजहबो के साथ-साथ पत्रकारों को दलाल, भड़वा, रखैल जैसे आपत्तिजनक नामो से पुकार कर उनकी औकात भी बता जाते हैं। इसलिए पत्रकारों को चाहिए देश को तरक्की की राह पर ले जाने वाली डिबेट कराए, अपनी कलम से देश के जो हालात हैं उन हालात से देश को निकालने के आलेख लिखे, अपनी राय बेहतरीन तरीके से निष्पक्ष होकर रखे। अर्थव्यवस्था, बेरोज़गारी, बलात्कार, महंगाई, बिगड़ती कानून-व्यवस्था पर डिबेट कराए, अपनी कलमों के ज़रिए देश के ऐसे गंभीर मुद्दों को उठाए और सरकार से सवाल करे। इन तमाम गंभीर मुद्दों को काबू में करने की एक पहल की शुरुआत करें, सरकार को इन मुद्दों को काबू में करने के बेहतर सुझाव दे अपनी राय रखे। और जनता को इन तमाम बातों से रूबरू कराए। इसलिए पत्रकार अपनी भूमिका तय करे, किसी के हाथों का खिलौना बनने के बजाए सच और सच्चाई का साथ दे सच को सच और झूठ को झूठ दिखाने का साहस दिखाए, कोई दबंग या बाहुबली अगर जान से मारने की धमकी देता हैं तो देता रहे बिल्कुल डरे नही क्योंकि जान उस ऊपर बैठे रब की दी हुई हैं और जान लेने का हक और अधिकार उसी रब को हैं इसलिए निडरता के साथ पत्रकारिता करे, अगर पत्रकार होने के बाद भी हमारे मन मे और दिल मे डर होगा तो कोई भी ऐरा-गैरा-उठाईगिरा जिसकी समाज मे और मोहल्ले में कोई वक़अत और कीमत नही हैं जिसकी बात कोई न सुनता हैं और न करता हैं वो भी पत्रकारों को धमका कर चला जाएगा। इसलिए सच्चाई के साथ निष्पक्ष और निडरता के साथ अपनी कलम का सही इस्तेमाल करे। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता हैं और इस चौथे स्तम्भ के बगैर देश की तरक्की की छत खड़ी हो ही नही सकती।


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