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13 जनवरी 2022

और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार फसादियों को खूब जानता है

 और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार फसादियों को खूब जानता है और अगर वह तुम्हे झुठलाए तो तुम कह दो कि हमारे लिए हमारी कार गुजारी है और तुम्हारे लिए तुम्हारी कारस्तानी जो कुछ मै करता हूँ उसके तुम जि़म्मेदार नहीं और जो कुछ तुम करते हो उससे मै बरी हूँ (41)
और उनमें से बाज़ ऐसे हैं कि तुम्हारी ज़बानों की तरफ कान लगाए रहते हैं तो (क्या) वह तुम्हारी सुन लेगें हरगिज़ नहीं अगरचे वह कुछ समझ भी न सकते हो (42)
तुम कही बहरों को कुछ सुना सकते हो और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो तुम्हारी तरफ (टकटकी बाँधे) देखते हैं तो (क्या वह इमान लाएँगें हरगिज़ नहीं) अगरचे उन्हें कुछ न सूझता हो तो तुम अन्धे को राहे रास्त दिखा दोगे (43)
ख़ुदा तो हरगिज़ लोगों पर कुछ भी ज़ुल्म नहीं करता मगर लोग खुद अपने ऊपर (अपनी करतूत से) जुल्म किया करते है (44)
और जिस दिन ख़़ुदा इन लोगों को (अपनी बारगाह में) जमा करेगा तो गोया ये लोग (समझेगें कि दुनिया में) बस घड़ी दिन भर ठहरे और आपस में एक दूसरे को पहचानेंगे जिन लोगों ने ख़ुदा की बारगाह में हाजि़र होने को झुठलाया वह ज़रुर घाटे में हैं और हिदायत याफता न थे (45)
ऐ रसूल हम जिस जिस (अज़ाब) का उनसे वायदा कर चुके हैं उनमें से बाज़ ख़्वाहा तुम्हें दिखा दें या तुमको (पहले ही दुनिया से) उठा ले फिर (आखि़र) तो उन सबको हमारी तरफ लौटना ही है फिर जो कुछ ये लोग कर रहे हैं ख़ुदा तो उस पर गवाह ही है (46)
और हर उम्मत का ख़ास (एक) एक रसूल हुआ है फिर जब उनका रसूल (हमारी बारगाह में) आएगा तो उनके दरम्यिान इन्साफ़ के साथ फैसला कर दिया जाएगा और उन पर ज़र्रा बराबर ज़़ुल्म न किया जाएगा (47)
ये लोग कहा करते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आखि़र) ये (अज़ाब का वायदा) कब पूरा होगा (48)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै खुद अपने वास्ते नुकसान पर क़ादिर हूँ न नफा पर मगर जो ख़ुदा चाहे हर उम्मत (के रहने) का (उसके इल्म में) एक वक़्त मुक़र्रर है-जब उन का वक़्त आ जाता है तो न एक घड़ी पीछे हट सकती हैं और न आगे बढ़ सकते हैं (49)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम समझते हो कि अगर उसका अज़ाब तुम पर रात को या दिन को आ जाए तो (तुम क्या करोगे) फिर गुनाहगार लोग आखि़र काहे की जल्दी मचा रहे हैं (50)

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