अजब लहजा है उस की गुफ़्तुगू का
ग़ज़ल जैसी ज़बाँ वो बोलता है
हर साल भारत में ९ नवम्बर को विश्व उर्दू दिवस (आलमी यौम-ए-उर्दू) मनाया जाता है। यह दिन इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि यह उर्दू के प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इक़बाल का जन्म दिवस भी है,
उर्दू किसी एक धर्म की जुबान नहीं है, यह सभी की जुबान है और यह प्यार-मोहब्बत का पैगाम देती है
ये ऐसी ज़ुबान है जिसको कोई अनपढ़ भी सलीके से बोले तो तालीमयाफ्ता नजर आता है,
उर्दू जुबान प्यार और मोहब्बत का पैगाम देती है. यह धर्म की सीमाओं को तोड़ती है. जिस तरह का समन्वय भाषाओं में है, उसी तरह का समन्वय हिंदू और मुसलमान भाइयों में भी रहना चाहिए, जिससे सामाजिक सद्भाव प्यार मोहब्बत बनी रहे.
गुलज़ार मियाँ ने लिखा :
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ये कैसा इश्क़ है उर्दू ज़बाँ का
मज़ा घुलता है लफ़्ज़ों का ज़बाँ पर
कि जैसे पान में महँगा क़िमाम घुलता है
ये कैसा इश्क़ है उर्दू ज़बाँ का
नशा आता है उर्दू बोलने में
गिलौरी की तरह हैं मुँह लगी सब इस्तेलाहें
लुत्फ़ देती है, हलक़ छूती है उर्दू तो,
हलक़ से जैसे मय का घोंट उतरता है
बड़ी अरिस्टोकरेसी है ज़बाँ में
फ़क़ीरी में नवाबी का मज़ा देती है उर्दू
अगरचे मअनी कम होते है उर्दू में
अल्फ़ाज़ की इफ़रात होती है
मगर फिर भी, बुलंद आवाज़ पढ़िए तो
बहुत ही मोतबर लगती हैं बातें
कहीं कुछ दूर से कानों में पड़ती है अगर उर्दू
तो लगता है कि दिन जाड़ों के हैं खिड़की खुली है,
धूप अंदर आ रही है
अजब है ये ज़बाँ, उर्दू
कभी कहीं सफ़र करते अगर कोई मुसाफ़िर शेर पढ़ दे 'मीर', 'ग़ालिब' का
वो चाहे अजनबी हो, यही लगता है वो मेरे वतन का है
बड़ी शाइस्ता लहजे में किसी से उर्दू सुन कर
क्या नहीं लगता कि एक तहज़ीब की आवाज़ है, उर्दू
रविश सिद्दीक़ी ने कहा
उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ीब का चश्मा है
वो शख़्स मोहज़्ज़ब है जिस को ये ज़ुबाँ आई
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