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01 मई 2021

आज तक न्यूज़ चैनल व्यापारी के वरिष्ठ ज़िम्मेदार कर्मचारी , भाई रोहित सरदाना , की अचानक मोत होना , देश के हर शख्स के दिलों को झकझोर देने वाली है

आज तक न्यूज़ चैनल व्यापारी के वरिष्ठ ज़िम्मेदार कर्मचारी , भाई रोहित सरदाना , की अचानक मोत होना , देश के हर शख्स के दिलों को झकझोर देने वाली है , उनके परिवार की , उनकी मासूम बेटियों की तस्वीरों के साथ , उनका मुस्कुराना , यक़ीनन , हमे सब को रुला देने वाली है ,,, रोहित तो चले गये , लेकिन देश में , देश के सिस्टम ,देश की पत्रकारिता ,देश के चौथे स्तम्भ , को लेकर , कई सवाल हमारे बीच छोड़ गए ,, रोहित सरदाना ,, आज तक चैनल में , सर्वोच्च ज़िम्मेदारी पर थे , हरियाणा में ही नहीं , दिल्ली में ही नहीं , प्रधानमंत्री , राष्ट्रपति , केबिनेट मंत्रियों ,सहित सभी वरिष्ठ अधिकारीयों में उनकी अच्छी पकड़ थी , खुद प्रधानमंत्री , राष्ट्रपति , मुख्यमंत्रियों सहित , किए दिग्गज लोगों ने उनके निधन पर ,, शोक व्यक्त कर उनको सम्मान दिया है , देश में आज पत्रकारिता की तीन शक्ल है ,, एक तो दिवंगत रोहित सरदाना , जैसी शक्ल , एक रवीश कुमार जैसी शक्ल , और तीसरी शक्ल , जो हम पत्रकारिता की देखना चाहते है , वोह शक्ल , जिसकी देश को ,देश के वर्तमान हालातों में , सिस्टम को सुधारने के लिए हमे ज़रूरत है , में एक इससे भी बिगड़ी हुई शक्ल की तो बात ही नहीं कर रहा , उसे तो महाराष्ट्र सरकार देख रही है , लेकिन आज चेनल्स की ब्रेकिंग न्यूज़ , सम्पादक तय नहीं करते है ,, उनको संचालित करने वाले लोगों को प्रभावित करने वाली , प्रभावित रखने वाले लोग , तय करते है , अख़बारों की फ्रंट लाइन ,, सम्पादक , रिपोर्टर्स , न्यूज़ की गंभीरता तय नहीं करती है , विज्ञापनदाता , इस खबरों को तय करवाते है , ,अब मुख पृष्ठ पर , आक्रामक खबरें नहीं , लीड , स्टीमर , प्रान्तीस बॉक्स की खबरें नहीं , सिर्फ विज्ञापन , विज्ञापन अधिकतम होते है ,, आज एक दैनिक अख़बार मेने देखा , राजस्थान के सिस्टम ,, नाकाम सिस्टम पर , अख़बार के कई रिपोर्टर्स ने , इस जानलेवा संक्रमित माहौल में ,, जान हथेली पर लेकर , रिपोर्टिंग की ,, तथ्यों को झिंझोड़ा , नाकामियों को स्वीकृत तथ्यों के साथ उजागर किया ,,, करोड़ो करोड़ रूपये के विज्ञापन भी अगर होते , तो वोह खबर , रिपोर्टर्स की मेहनत , जिसे में सेल्यूट करता हूँ ,, फर्स्ट पेज पर ,, फर्स्ट लीड के रूप में , तहलका मचा देने वाली होती , लेकिन उस खबर की गंभीरता , फर्स्ट पेज पर तो विज्ञापन , और पेज दो पर खबर , होने से , मिटटी में मिल गयी , रिपोर्टर्स की मेहनत ,, जिसे पुरस्कृत किया जाना था , एक पिछले पेज पर जाने से अपमानित हो गयी , खेर सिस्टम है ,, , अब चौथा स्तम्भ नहीं रहा ,, पत्रकारिता भी पेट पालने का साधन और , उद्योगों की तरह संचालित होने वाला सिस्टम बन गया , तो ज़ाहिर है , उनका भी वही ,, सामाजिक ,नारा , ना बाप बढ़ा ना भय्या सबसे बढ़ा रुपय्या वाला हो गया है , ,तो में बात कर रहा था , भाई रोहित सरदाना के हष्ट पुष्ट होने के बाजवूद भी , मामूली सी तकलीफ में अचानक हार्ट अटेक होकर , हमारे बीच से चले जाने की ,, क्या यह सिस्टम को झकझोरती नहीं है , क्या यह सोचने पर मजबूर नहीं करती , एक पत्रकार , जो प्रधानमंत्री से लेकर , कई केबिनेट मंत्रियों , राष्ट्रपति , राज्यपालों , शीर्ष अधिकारीयों , न्यूज़ इन्फोर्मर्स , मुख्यमंत्रियों से सीधे सम्पर्क में थे , उसके बावजूद अस्पताल में उन्हें बचाया नहीं जा सका ,, इसकी जांच होना चाहिए , यक़ीनन , मोत सभी की निश्चित है , लेकिन एक हष्ट पुष्ट शख्स , मामूली सा कोरोना , शीर्ष डॉक्टर्स के सम्पर्क के बाद भी , कोरोना से नहीं , कोरोना में , हार्ट अटेक होने से चला गया , क्या उनकी चिकित्सा मदद में कमी रही ,, क्या उन्हें समय पर चिकित्सा सुविधा मिली , या नहीं , वोह कोनसी दवाएं ले रहे थे ,, भविष्य में वोह कोनसी न्यूज़ पर , किस के खिलाफ न्यूज़ प्रसारित करने के अभियान में जुटे थे ,, यह सब तथ्य है ,, जिन की जांच , पूर्व में एक फ़िल्मी हीरो की मृत्यु की तर्ज़ पर , बाल की खाल निकालने की तरह होना चाहिए ,, रोहित सक्षम थे , लेकिन उनके परिजन , उनकी विधवा , उनकी मासूम बेटियों के सपनों का क्या ,, ऐसे पत्रकार जो , रिपोर्टिंग के दौरान , शहीद , जी हाँ में शहीद का ही दर्जा ऐसे पत्रकारों को दूंगा , ,शहीद हो रहे हैं , उनके परिजनों के ,, भविष्य की सिक्युरिटी के लिए केंद्र सरकार हो , राज्य सरकारें हों , उन्हें विशेष पैकेज तो देना ही चाहिए ,, इस मामले में देश के पत्रकारों और इस तरह के कामों में लगे सभी कर्मकारों को एक जुट होना ही चाहिए , राजस्थान में तो अशोक गहलोत सरकार ने रिपोर्टिंग के दौरान , कोरोना से मृत्यु और उन्हें विशेष व्यवस्था में जोड़कर उनके परिजन को सिक्योर करने का प्रयास किया है , ,लेकिन केंद्र और दूसरे राज्यों का क्या करें , क्या उनकी ज़िम्मेदारी ऐसे पत्रकारों के लिए नहीं बनती , क्या पत्रकार संगठनों का कर्तव्य ऐसी सरकारों के खिलाफ आवाज़ उठाने की नहीं बनती ,, रोहित की मृत्यु पर , सभी को दुःख है , लेकिन कुछ लोग , इस मोत पर भी खुशियां मना रहे है , सोशल मीडिया पर गिद्धों की तरह , राहत इन्दोरी की मृत्यु पर जो कुछ लोगों ने तमाशा किया था , वोह तमाशा कर रहे है ,, आज तक के पुराने न्यूज़ , जिनमे , जमातियों को आतंकवादी बताया गया है , हर मुद्दे को , भटका कर हिन्दू मुस्लिम किया गया है , रिपोर्टिंग को रिपेरिंग की तरह नहीं , सिर्फ भाजपा को पोलिटिकल फायदे पहुंचाने की तरह प्रस्तुत किया गया है , उनके फुटेज , खुद , रोहित के ट्वीट्स के साथ , चलाये गए है , लेकिन यह अफसोसनाक है ,, किसी की मृत्यु पर बदला नहीं लिया जाता , संवेदनाये पेश की जाती है , में ऐसी हर बेहूदा कार्यवाही की खुली आलोचना करता हूँ , जो इस तरह की अफसोसनाक हरकतों में जुटे रहे है ,, लेकिन यह सच है ,, के अगर , देश में पत्रकारिता जीवित रही होती ,, अगर देश के पत्रकारों , न्यूज़ चेनल्स ने , पचास फीसदी भी , अपना कर्तव्य निभा लिया होता तो आज देश लाशों का ढेर नहीं होता , देश आज रोता बिलखता नहीं होता , देश आज मुस्कुरा रहा होता , देश आज विकसित होता , एक जुट होता ,, मोबलिंचिंग जैसी घटनाओ से अलग हठ कर ,, नफरत की भाषा भुलाकर , मोहब्बत के तराने गा रहा होता , यहाँ हिन्दू हिन्दू नहीं होता , यहाँ मुसलमान ,, मुसलमान नहीं होता ,, सिर्फ हिन्दुस्तान होता , हिंदुस्तानी होता , लेकिन इन सात सालों में , जो पत्रकारिता में बदलाव आये है ,, जो पेड़ पत्रकारिता ,के नाम पर प्रवक्ता गिरी शुरू हुई है , उसी की वजह है ,जो आज देश इस हालत में है , ज़रा सोचिये ,, कोरोना के पहले संक्रमण काल में , , अमेरिका राष्ट्रपति को देश में यात्रा कराने के लिए किस तरह से विदेशी फ्लाइट बंद करने की जगह चालु रखी गयी , लाखों लोग ,, सूरत में , अहमदाबाद में झोपड़ पट्टियों को छुपाने के लिए दीवारें खड़ी कर अमेरिका राष्ट्रपति की गयी ,, संक्रमण के दौरान , दवा , और दूसरे प्रबंधनों की जगह ,, थाली बजवाई गयी , लोकडाउन में मज़दूरों का नरसंहार ट्रेन एक्सीडेंट जैसी घटनाओं में हुआ , लेकिन सिस्टम के खिलाफ पत्रकारिता खामोश रही ,,, समर्थन में पत्रकारिता चलती रही , उलटे हिन्दू मुस्लिम क्या गया ,, जमात पर खुले रूप से आतंकवादी होकर , योजनाबद्ध तरीक़े देश में कोरोना फैलाने के तथ्यहीन आरोप दिखाकर ,, अमेरिका राष्ट्रपति की यात्रा , मध्यप्रदेश सरकार गिरा कर भाजपा की सरकार बनाने की कोशिशों की वजह से , ,देश में कोरोना फैला है ,, इस तःथ्य को पलटने की कोशिश की गयी , खेर अल्लाह का शुक्र रहा , जो हालात सुधरे , लेकिन दूसरे स्टेण्ड संक्रमण की हमे नवम्बर 2020 में जानकारी मिली , हमारी केंद्र सरकार ने इस तरफ क्या शोध क्या , क्या व्यवस्थाएं की , जनहित में क्या योजनायें बनायीं , स्वास्थ्य विभाग ने , राज्यों को क्या निर्देशः दिए , क्या एडवाइज़री जारी की , इसकी रिपोर्टिंग नहीं हुई , , खुले रूप से , ऐसे खतरों के बावजूद भी दिल्ली के दंगे , ,फिर चुनाव , बंगाल , आसाम , पांच राज्यों के चुनाव , किसान आंदोलन के नाम पर ज़िद , यह सब तथ्य थे जिन पर ,, निष्पक्ष रिपोर्टिंग होना थी , जिन पर ,बिना मास्क के नेताओं की बखियाएँ उधेड़ना थीं , देश में दूसरे संक्रमण के दौर में केंद्र और राजय सरकारों की लापरवाही की खिंचाई कर उन्हें व्यवस्थाएं करने पर , मजबूर करना था , लेकिन अफ़सोस , हम सिर्फ एक शख्स की सभी नाकामयाबियों को छुपा गुणगान करते रहे , अरे कांग्रेस , भाजपा , सरकार ,, या कोई भी अधिकारी , पत्रकारों को कभी कुछ नहीं देता , सिर्फ शोषण करते है , वोह बात अलग है , कोई मीडिया एडवाइज़र , कोई पद्मश्री ले लेता है , कोई आयोगों में , सुचना आयुक्त या फिर कहीं नियुक्त हो जाता है , लेकिन यह गिनती की चीज़े है , पत्रकारिता के दायित्यों से भटक कर , एक कर्मचारी मात्र बनकर , सिर्फ मालिकों को तो फायदा दिलवा सकते ,, हो ,, लेकिन देश , देश की जनता , खुद के परिवार , पत्रकारिता के धर्म को हम सुरक्षित किसी भी सूरत में नहीं रख सकते , आज अन्ना गायब , बाबा रामदेव गायब , ऐसे ना जाना कितने देश भक्त गायब ,, कोई सवाल नहीं ,, प्रधानमंत्री से , निष्पक्ष ,होकर कोई सवाल नहीं , वर्तमान हालातों में , ज़िम्मेदार कोन , इसके कोई जवाबदारी तय नहीं ,,, अरे रोहित सरदाना साहब तो प्रभावशाली थे ,अचानक माइल्ड कोरोना , फिर अचानक , हार्ट अटेक ,, यह सिस्टम की लापरवाही है ,,, देश में पत्रकार प्रोटेक्शन एक्ट के लिए , कोई आवाज़ नहीं उठाता , कोई का मतलब ,, राष्ट्रिय मंच पर , चेनल्स ,राष्ट्रिय समाचार पत्र , पत्रकारों के बीमा , कोरोना रिपोर्टिंग में सुरक्षात्मक उपाय , उनके वेतन , उनके भत्ते , उनके परिवार वालों के कल्याण की योजनाए , पत्रकारों को खतरों में रहकर , रिपोर्टिंग के बाद , उनके प्रतिफल , बढ़ाने पर , कोई बात नहीं करता , मालिकों के लिए विज्ञापन और पत्रकारों के लिए छटनी , अजीब बात है ,, तो दोस्तों , हिन्दू मुस्लिम छोडो ,,, तेरा मेरा छोडो , सवाल करो , पूंछों , इधर उधर की बात ना कर , यह बता क़ाफ़िला क्यों लुटा ,, क़ाफ़िला किसकी वजह से लुटा ,, इन सवालों के जवाब खोजो , देश को इन सवालों के जवाब चाहिए देश को सुरक्षित रखना ,आपकी हमारी ज़िम्मेदारी है , और देश को असुरक्षित करने के पीछे जो लोग है , उन्हें बेनक़ाब कर , निष्पक्ष तरीके से सड़क पर लाने की ज़िम्मेदारी भी हमारी अपनी है ,, अगर ऐसा हुआ ,अगर ऐसी निष्पक्षता रही , अगर कॉर्पोरेट सेक्टर की पत्रकारिता में , जर्नलिज़्म को जर्नलिज़्म रखा गया , चापलूसी , चमचागिरी , एअजेंटगिरि , प्रवक्ता गिरी से आज़ाद किया गया , तो हमे न रोहित सरदाना की आलोचना पर तकलीफ होगी , न ही रवीश कुमार पर गुस्सा आएगा ,, बस हम देखेंगे , दिल पर हाथ रखेंगे , हमारी आलोचना होगी , हमारे अपने की भी आलोचना होगी , तो दिल पर हाथ रख कर हम खुद कहेंगे , बात तो सही है , और ऐसे सभी पत्रकारों का , विचारकों का दिल से सम्मान करेंगे ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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