शहर भर में मजदूर जैसे,
दर-बदर कोई न था,
जिसने सबका घर बनाया,
उसका घर कोई न था...
कैसे कह दूं , मज़दूर दिवस मुबारक हो , ना मज़दूर हैं , ना मज़दूरी है , घरों में केद , अस्पतालों में सिसकियाँ , शमशान , क़ब्रिस्तानों में लाइनें , सड़कों पर लोकड़ाऊन , पुलिस के डंडे जुर्माने है , ओर हाकम मज़े में हैं , अख़्तर
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