सूरए अज ज़ारियात
सूरए अज ज़ारियात मक्का में नाजि़ल हुआ और उसकी साठ (60) आयते है
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
उन (हवाओं की क़सम) जो (बादलों को) उड़ा कर तितर बितर कर देती हैं (1)
फिर (पानी का) बोझ उठाती हैं (2)
फिर आहिस्ता आहिस्ता चलती हैं (3)
फिर एक ज़रूरी चीज़ (बारिश) को तक़सीम करती हैं (4)
कि तुम से जो वायदा किया जाता है ज़रूर बिल्कुल सच्चा है (5)
और (आमाल की) जज़ा (सज़ा) ज़रूर होगी (6)
और आसमान की क़सम जिसमें रहते हैं (7)
कि (ऐ एहले मक्का) तुम लोग एक ऐसी मुख़्तलिफ़ बेजोड़ बात में पड़े हो (8)
कि उससे वही फेरा जाएगा (गुमराह होगा) (9)
जो (ख़ुदा के इल्म में) फेरा जा चुका है अटकल दौड़ाने वाले हलाक हों (10)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
31 मार्च 2021
सूरए अज ज़ारियात
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