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18 फ़रवरी 2021

बड़े कैनवास के कवि : कुमार शिव

बड़े कैनवास के कवि : कुमार शिव
एक अदीब होने के नाते मुझे पारम्परिक काव्य पढ़ना पड़ता है लेकिन साथ ही साथ अगर मैं समसामयिक काव्य से परहेज़ करूँ तो मेरा नुकसान भी पक्का है। नुकसान ही कहा जायेगा क्योंकि इस से मैं अपने समय की नब्ज़ पकड़ नहीं पाऊँगा। जैसे भक्ति काल में शृंगार लिखने वाले कवि थे लेकिन युग निर्माण में उन्हें मार्जिन लाइन पर रख दिया गया। ऐसे में कुछ का नाम समय को चीरते हुए आगे आया तो कुछ गर्त के हवाले हो गए।
आज के दौर में मैंने ऐसे भी सुख़नवर देखे हैं जो किसी को पढ़ते ही नहीं। पूछने पर गर्व से जवाब ये देते हैं कि, "मुझे अपना प्रभाव नहीं खोना।" उन्हें यह भ्रम है कि वह किसी को यदि पढ़ेंगे तो अपना अस्तित्व खो देंगे। असल बात तो ये है कि ऐसे कवि केवल दूसरों को ही पढ़ कर जोड़ते-तोड़ते हैं। कविता जब अपने चरम भाव पर होती है तब वह किसी भी बाहरी प्रभाव के वशीभूत नहीं होती। वह मौलिक रूप में ही जन्म लेती है।
मौलिकता की बात करता हूँ तो मुझे अपने आस-पास फैले कवि समुद्र में गोते लगाने पर यह पता चलता है कि वास्तव में आज भी मौलिकता जिंदा है। मुझसे गर कोई पूछे तो मैं कई नाम भी गिना सकता हूँ। पर उन नामों में से जो नाम मुझे सबसे अधिक प्रभावित करता है उसमें से एक हैं "कुमार शिव जी"।
कुमार शिव जी की रचनाओं से मेरी मुलाकात आज से दो साल पहले हुई। उस समय कुमार जी फेसबुक पर अपनी किताब 'एक गिलास दुपहरी' से प्रतिदिन एक ग़ज़ल साझा कर रहे थे। मैं जिन्हें बड़े चाव से पढ़ता था। कुछ शे'र आप भी देखिए -
जी लेंगे हम भी दे देना हँस कर एक उदास दुपहरी।
पी लेंगे हम भी दे देना भर कर एक गिलास दुपहरी।।
-
आलीशान महल में जाकर हमें घुटन सी होती है।
आप दोस्तों भीतर रहना हम तो बाहर जाते हैं।
-
शे'र पढ़कर आपको ग़ज़लकार के मेयार का अंदाज़ा तो हो ही गया होगा। चलिए अब मैं आप का भी परिचय कुमार शिव जी से करवाता हूँ। कुमार शिव जी का जन्म 11 अक्टूबर 1946 में चंबल, राजस्थान में हुआ। पेशे से कुमार शिव जी राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहे हैं लेकिन दिल से एक कवि/शायर। मेरी एक रोज़ कुमार शिव जी से फोन पर बात हुई थी जिसमें मैंने अपने प्रिय कवि से कई सवाल पूछे, चलिए देखते हैं -
तेजस - आप की रचनाओं में प्रकृति बिम्ब के रूप में अधिकतर प्रयुक्त हुई है कैसे आप ने अपनी किताब का नाम एक गिलास दुपहरी तय किया?
कुमार शिव जी - बेटा, मैं तुम्हारी उम्र से कविता लिखने लगा था। इस किताब के प्रकाशन के लिए धर्मवीर भारती जी ने मुझसे कहा, अब कैसे और कब ये नाम तय हुआ मैं कुछ कह नहीं सकता। बस यही मेरा लहज़ा है।
तेजस - जी । सर, तब तो आप समकालीन साहित्यकारों से परिचित रहे होंगे?
कुमार शिव जी - हाँ, बिल्कुल। दुष्यंत कुमार मेरे मित्र थे। निदा जी , बशीर बद्र जी और वसीम बरेलवी जी के साथ मैंने मंच साझा भी किया है। जम्मू में दुष्यंत जी के साथ भी मैं कविता पढ़ने जाया करता था।
तेजस - दुष्यंत जी तो मेरे भी प्रिय कवि हैं।सर, आप की मुलाकात कैसे हुई?
कुमार शिव जी - मैं अपनी पत्नी के साथ एक बार दिल्ली जा रहा था और दुष्यंत जी भी दिल्ली जा रहे थे। मैं ऊपर की बर्थ पर सो रहा था लेकिन जब सो कर उठा तो नीचे शेरो-शायरी का माहौल तैयार था। बात करने पे पता चला कि वो दुष्यंत कुमार हैं। बेटा, उस समय दुष्यन्त जी 'साये में धूप' की ग़ज़लें लिख रहे थे।
तेजस - सर आप की कौन - कौन सी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं?
कुमार शिव जी - शंख-रेत के चेहरे ( गीत - संग्रह, 1970 ), हिलते हाथ दरख्तों के ( 1990 ), आईना ज़मीर का देखा ( 51 ग़ज़ल, ग़ज़ल संग्रह, 2007 ), एक गिलास दुपहरी ( ग़ज़ल संग्रह, 2016 ), पंख धूप के ( ग़ज़ल व दोहे )।
तेजस - सर, फिर तो आपको पुरस्कार भी मिले होंगे?
कुमार शिव जी - हाँ, बेटे। राजस्थान साहित्य अकादमी ने दो बार क्रमशः 11 व 51 हज़ार का पुरस्कार दिया लेकिन मैंने दोनों लौटा दिए।
तेजस - सर, आप का प्रिय कवि या ग़ज़लकार कौन रहा है?
कुमार शिव जी - दुष्यंत कुमार जी।
तेजस - कोई शे'र जो दुष्यंत जी का आप को पसंद हो लेकिन कहानी के साथ बताइये?
कुमार शिव जी -" एक बूढ़ा आदमी है मुल्क़ में या यों कहो
इस अँधेरी कोठरी में एक रौशनदान है। "
ये शे'र इमरजेंसी के समय का है। यह शे'र उन्होंने जय प्रकाश नारायण जी के लिए कहा था।
तेजस - समकालीन ग़ज़ल पर आपके क्या विचार हैं?
कुमार शिव जी - नई कविता वाले ग़ज़ल से परहेज़ करते हैं, जो ग़ज़ल कह भी रहे हैं उन्हें बह्र-रदीफ़-काफ़िया तक की समझ नहीं है।
तेजस - सर, मैंने देखा है आपने दोहे खूब कहे हैं इधर। कुछ सुनाइये जो आप के दिल के करीब हों?
कुमार शिव जी - हाहाहा.....मैंने 1000 के आस-पास दोहे कहे हैं बेटा ....
देखी कमसिन चाँदनी जल का डिगा ज़मीर।
सही निशाने पर लगे कामदेव के तीर।
चम्पा और कनेर में क्या होता संवाद।
कोयल बैठी पेड़ पर करती है अनुवाद।।
तेजस - आह ! क्या मानवीकरण है। अद्भुत। सर कोई शे'र भी -
कुमार शिव जी -
लहरें लिपट रहीं साहिल से टूट-टूट कर बिखर रहीं।
सिर पर कपड़ा बाँधे नौका पर बैठा मछुआरा दिन।।
कुमार शिव - बेटा, बहुत वक़्त हो गया। तुमसे बात करके अच्छा लगा। तुम्हारे संस्मरण और कविताएं पढ़ता हूँ, तुम भी बहुत अच्छा लिखते हो। तुम्हें देख कर मुझे अपना बचपन याद आ जाता। बहुत ललक थी मुझमें भी।
तेजस - सर, ऐसे ही मैं अब आप को परेशान करता रहूँगा.. आप की आज्ञा है क्या?
कुमार शिव जी - बिल्कुल, जब जी चाहे बात कर लेना।
तेजस - प्रणाम सर।
कुमार शिव जी - खुश रहो बेटा।
- प्रणव मिश्र'तेजस'

 

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