एक देर रात व एक अलसुबह सहित संभाग का छठा नैत्रदान सम्पन्न
बेटे,बहुओं सहित भाईयों के सहयोग से सम्पन्न हुआ नैत्रदान
विज्ञान
नगर निवासी भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर , रावतभाटा से सेवानिवृत्त श्री मोहन
बिहारी सक्सेना जी (80 वर्षीय) का कल शाम निधन हो गया था,उनके देहांत के
उपरांत उनके भाई संदीप व शैलेंद्र ने, मोहन जी के बेटों अखिल व निखिल की
सहमति से शाइन इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से उनका नैत्रदान सम्पन्न करवाया ।
मोहन जी ने कुछ वर्ष पहले दधीचि देह-दान समिति के माध्यम से अंगदान का
प्रण लिया था। इस प्रण को कोटा की शाइन इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से पूर्ण
किया गया।
मोहन बिहारी
काफ़ी सरल स्वभाव के जिंदादिल इंसान थे,जरूरत मंद लोगों की मदद करके उनको
हमेशा खुशी मिलती थी,शायद यहीं उनके अच्छे स्वास्थ्य व मुस्काते चेहरे का
राज़ था ।
मोहन जी की बहू
संध्या सक्सेना भी गाजियाबाद में अँगदान के अभियान में काफ़ी समय से काम कर
रही है । उनको भी जब पता चला कि,सभी ने शोक के समय को भूल कर पिता जी का
नैत्रदान सम्पन्न करवाया है,तो इस बात से मन को थोड़ा सुकून मिला कि,हमारे
पिता जी की आँखों से किसी दृष्टिहीन की दुनिया रौशन होगी ।
ज्ञात
हो कि मोहन जी का अपने पिता तुल्य जीजाजी श्री वीरेंद्र जी के काफ़ी करीब
थे । ऐसा कोई सुख-दुख का समय नहीं था,जो उन्होंने साथ न बिताया हो,अभी चार
दिनों पहले ही अचानक वीरेंद्र जी की तबियत खराब होने से उनका जयपुर में
निधन हो गया,सभी ने कोशिश की,यह दुखः की खबर किसी भी तरह मोहन जी को न
लगें, नहीं तो मोहन जी की तबियत ख़राब हो सकती है । परंतु, दुर्भाग्यवश कल
रात इनको यह ख़बर लग गयी,और उसी समय घर पर ही हृदयाघात होने से इनका निधन हो
गया ।
देर रात 11 बज़े शाइन इंडिया फाउंडेशन व आई बैंक सोसायटी, कोटा चेप्टर के सहयोग से घर पर ही यह नैत्रदान का कार्य संपन्न हुआ ।
इसी
क्रम में एक माह पहले जयपाल चुगवानी जी की भाभी श्रीमति कोमल चुगवानी जी
का देहांत हुआ था,तब शाइन इंडिया फाउंडेशन के ज्योतिमित्र सुरेंद्र काकवानी
जी की सहयोग से उनका नेत्रदान हुआ था, उसी समय जयपाल जी ने नैत्रदान की
प्रक्रिया को अपने सामने देखा था, बहुत कम समय में होने वाले इस नेक काम के
बाद मिलने वाले सुकून को वह अच्छे से समझ सकते थे,इसलिए जैसे ही उनको
सिंधी कॉलोनी, वल्लभ नगर निवासी दिलीप जी (58 वर्षीय) की मृत्यु की सूचना
मिली तो,उन्होंने अपनी ओर से शोकाकुल परिवार के भाई महेश, बहन मीना और
पत्नि हेमा को पूरा समझाने का प्रयास किया । दो घंटे के बाद परिवार की
सहमति मिलने पर सुबह 5 बज़े उनके निवास पर ही नैत्रदान कि प्रक्रिया सम्पन्न
हुई।
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